✍🏻 डिजिटल न्यूज डेस्क। भारत की सामाजिक संरचना में आरक्षण व्यवस्था लागू होने से पहले और उसके बाद भी ओपन कैटेगरी का सबसे बड़ा हिस्सा उन तबकों के पास रहा है, जिनके पास शिक्षा, जमीन और आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता पहले से थी। देश की आज़ादी के बाद जब नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश मेरिट पर आधारित हुआ, तब तकरीबन पूरा अवसर सामान्य वर्ग के लोगों के पास ही था। इस वर्ग में उच्च जातियां और क्षेत्रीय प्रभावशाली जातियां सबसे अधिक लाभान्वित हुईं।
शुरुआती दशकों में ब्राह्मण, बनिया, कायस्थ और अन्य उच्च जातियों ने ओपन कैटेगरी से सर्वाधिक लाभ उठाया। इनके पास अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा, सरकारी स्कूल-कॉलेज तक पहुंच और सामाजिक नेटवर्क का मजबूत आधार मौजूद था। यही कारण रहा कि सरकारी नौकरियों से लेकर प्रशासनिक सेवाओं तक इस वर्ग का दबदबा लंबे समय तक बना रहा। सिविल सेवा परीक्षा, मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले से लेकर न्यायपालिका और प्रोफेशनल सेक्टर तक, इस तबके के युवाओं ने बढ़त बनाए रखी।
महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मराठा समाज, गुजरात में पटेल, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में जाट, आंध्र प्रदेश में रेड्डी और कम्मा, तमिलनाडु में ब्राह्मण और नायर, केरल में नंबूदिरी और नायर समुदाय ओपन कैटेगरी के सबसे बड़े लाभार्थी रहे। इन जातियों के पास बड़ी जमीन-जायदाद, राजनीतिक पकड़ और शिक्षा पर निवेश करने की क्षमता रही। इसी कारण उच्च शिक्षा और सरकारी सेवाओं में उनकी संख्या अधिक रही।
शहरी मध्यमवर्ग भी ओपन कैटेगरी का अहम हिस्सा रहा। ब्राह्मण, बनिया और कायस्थ परिवारों ने शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से बढ़त बनाई। 1950 और 60 के दशक में इस तबके के युवा बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग, मेडिकल और आईएएस जैसी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में सफल हुए। नौकरी की स्थिरता और सफेदपोश पेशों की वजह से इनके परिवारों में नई पीढ़ी और भी मजबूत होती गई।
खेती और जमीनदार तबका भी इस प्रक्रिया में पीछे नहीं रहा। मराठा, जाट, पटेल और रेड्डी जैसी जातियों ने कृषि संपन्नता को शिक्षा में बदलने की रणनीति अपनाई। बड़े पैमाने पर स्कूल-कॉलेज खोले गए और अपने समाज के युवाओं को उच्च शिक्षा दिलाने पर जोर दिया गया। इससे ओपन कैटेगरी की सीटों पर इनका कब्जा बढ़ता चला गया।
दूसरी ओर, दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों को शिक्षा और अवसरों तक ऐतिहासिक रूप से सीमित पहुंच रही। यही कारण रहा कि ओपन कैटेगरी में इनकी भागीदारी नगण्य रही। हालांकि कुछ परिवार शिक्षा और आर्थिक स्थिति के आधार पर उभरे, लेकिन उनकी संख्या बेहद कम रही।
कुल मिलाकर, ओपन कैटेगरी में सबसे ज्यादा फायदा उच्च जातियों और क्षेत्रीय प्रभुत्वशाली जातियों को मिला। अंग्रेजी शिक्षा, संसाधनों की प्रचुरता और सामाजिक प्रतिष्ठा ने इन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं और रोजगार बाजार में लंबे समय तक बढ़त बनाए रखने में मदद की।