अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में, अदालत ने कहा, शासन के दायरे में आता है यह मुद्दा
डिजिटल न्यूज डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें सामाजिक और जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि यह एक नीतिगत मामला है, जिसमें शीर्ष अदालत हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है।
पी. प्रसाद नायडू ने वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला और अधिवक्ता श्रवण कुमार करनम के माध्यम से उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर जाति जनगणना कराने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की थी। सोमवार को न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने सुनवाई की।
अदालत ने पूछा- हम क्या कर सकते
जब मामले पर सुनवाई हुई तो न्यायमूर्ति रॉय ने पूछा कि इस बारे में क्या किया जा सकता है? यह शासन के क्षेत्र में आता है। हम क्या कर सकते हैं? पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर जंदयाला और अधिवक्ता श्रवण कुमार कर्णम से कहा, ‘यह एक नीतिगत मामला है।’
इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब दिया, ’94 देशों ने ऐसा किया है। भारत ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। इंद्रा साहनी जजमेंट में कहा गया है कि ऐसा समय-समय पर किया जाना चाहिए।’
अदालत इस मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं कर सकती
इस पर पीठ ने कहा कि याचिका को खारिज किया जा रहा है क्योंकि अदालत इस मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। न्यायालय के रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता पी प्रसाद नायडू ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया।
अब तक जनगणना-2021 के लिए गणना नहीं की
नायडू ने अपनी याचिका में कहा कि केंद्र और उसकी एजेंसियों ने अब तक जनगणना-2021 के लिए गणना नहीं की है। शुरुआत में कोविड-19 महामारी के कारण ऐसा नहीं किया गया था और बाद में इसे बार-बार टाला गया। 2021 के लिए देश की जनगणना की गणना अप्रैल, 2019 में शुरू की गई थी। लेकिन यह आज तक पूरी नहीं हुई।’