भीमा कोरेगांव मामला: प्रोफेसर हनी बाबू की रिमांड 21 अगस्त तक बढायी गई
मुंबई। दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हनी बाबू को भाकपा माओवादी से संबंध रखने के आरोप में पिछले महीने 28 जुलाई को एनआईए ने गिरफ्तार किया था। एल्गार परिषद केस (भीमा कोरेगांव मामला) में गिरफ्तार किए गए एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू को मुंबई की एक विशेष अदालत ने 21 अगस्त तक एनआईए की रिमांड पर भेज दिया है। हनी बाबू का रिमांड शुक्रवार को समाप्त हो रहा था, ऐसे में विशेष अदालत के जज डीइ कोथालीकर ने एनआईए की अर्जी पर उनकी रिमांड 21 अगस्त तक बढा दी।
एनआईए ने कोर्ट के सामने यह दावा किया था कि हनी बाबू का संबंध भाकपा माओवादी से है। बता दें कि भाकपा माओवादी एक नक्सली संगठन है, जिसका प्रभाव महाराष्ट्र सहित छत्तीसगढ, झारखंड, आंध्रप्रदेश व कुछ अन्य राज्यों में है।
पुणे के भीमा कोरेगांव में 31 दिंसबर 2017 को एल्गार परिषद के सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषण के बाद हिंसा भड़क गई थी। पुणे पुलिस का आरोप है कि इस भाषण के बाद पुणे के बाहरी इलाके में स्थित भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क उठी। पुणे पुलिस ने इस मामले में 15 नवंबर 2018 को चार्जशीट दायर किया था और 21 फरवरी 2019 को मामले में पूरक चार्जशीट दायर किया गया।
एनआईए ने 24 जनवरी को जांच शुरू की। दो अगस्त को हनी बाबू की गैर मौजूदगी में पुलिस ने उनके घर की छानबीन की थी और तलाशी ली थी। इस मामले में दिल्ली टीचर्स यूनियन ने कहा था हनी बाबू के मामले की सही जांच की जाए और उनके परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाए। यूनियन ने आरोप लगाया था कि हनी बाबू की पत्नी जेनी रोविना व उनकी बेटी की मौजूदगी में पुलिस ने घर की तलाशी ली और उन्हें परेशान किया। जेनी रोविना मिरांडा हाउस काॅलेज में पढाती है। हनी बाबू की गैर मौजूदगी में पुलिस ने उनके घर की छानबीन ली। हनी बाबू और उनकी पत्नी जेनी दोनों ही जाति विरोधी आंदोलन के लिए संघर्ष करते रहे हैं।
एसएफआई ने भी कहा था कि सबूत की तलाशी के लिए की गई यह छापेमारी यह बताती है कि किस तरह स्कालर्स और एक्टिविस्ट का उत्पीड़न किया जाता है। संगठन ने उनकी गिरफ्तारी का विरोध भी किया था। बता दें कि महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार ने वर्ष 2018 के इस मामले की समीक्षा करने का फैसला लिया था और उसके ठीक बाद केंद्र की मोदी सरकार ने मामले की जांच एनआईए को सौंप दी। महाराष्ट्र सरकार की ओर से इस पर नाराजगी जतायी गई थी।
महाराष्ट्र सरकार ने कहा था कि केंद्र ने बिना राज्य के परामर्श के ऐसा फैसला लिया है। एनसीपी की ओर से भीमा कोरेगांव ममले में गिरफ्तार किए गए लोगों पर से केस वापस लेने की मांग भी की गई थी। राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ऐसे दलित कार्यकर्ताओं जिनके खिलाफ गंभीर आरेाप नहीं थे, उनके केसों को वापस लेने की बात कही थी।
बता दें कि इस मामले में कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को आरोपी बनाया गया। पिछले महीने वरवरा राव को राष्ट्र की धरोहर बताते हुए आंधप्रदेश के 800 पत्रकारों ने उनकी जमानत की गुहार लगायी थी।