विश्व मानचित्र पर प्रमुख सैन्य संघर्ष क्षेत्रों और हथियार निर्माता कंपनियों के प्रभाव को लेकर एक विशेष लेख…
✍🏻 विशेष रिपोर्ट | प्रहरी अंतरराष्ट्रीय डेस्क:
आज का वैश्विक परिदृश्य एक विचित्र और खतरनाक संतुलन पर टिका है, जहां एक ओर शांति सम्मेलनों, संयुक्त राष्ट्र की बैठकों और वैश्विक लोकतंत्र की बातें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर हथियारों के सौदागर दिन-रात युद्ध की ज़मीन तैयार करने में लगे हैं। वाशिंगटन से बीजिंग, कीव से गाज़ा और दिल्ली से इस्लामाबाद तक दुनिया आज एक बार फिर युद्ध की दहलीज़ पर खड़ी है।
अमेरिका और चीन के बीच दक्षिण चीन सागर और ताइवान को लेकर बढ़ता तनाव, रूस-यूक्रेन युद्ध का तीसरा वर्ष, इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में इरान की गहरी संलिप्तता और भारत-पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर लगातार हो रही झड़पें, ये सब केवल भूराजनीतिक टकराव नहीं, बल्कि एक बहुत बड़ी वैश्विक सैन्य-औद्योगिक संरचना की परछाइयां हैं।
🔥 टकराव के केंद्र में कौन?
1. अमेरिका बनाम चीन:
👉ताइवान को लेकर सैन्य अभ्यासों का सिलसिला तेज़।
👉चिप टेक्नोलॉजी और साउथ चाइना सी में नौसैनिक झड़पें।
👉अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, जापान और फिलीपींस को साथ जोड़ कर चीन को घेरने की रणनीति तेज की है।
2. रूस बनाम यूक्रेन:
- 2022 से शुरू हुआ युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा।
- अमेरिका और नाटो का अरबों डॉलर का हथियार समर्थन।
- रूस की सैन्य-औद्योगिक ताकत फिर सक्रिय।
3. इजरायल बनाम इरान-फिलिस्तीन:
- गाज़ा में हमास के विरुद्ध कार्रवाई अब पश्चिम एशिया में एक व्यापक संघर्ष का रूप ले चुकी है।
- इरान द्वारा ड्रोन और मिसाइलों से प्रत्यक्ष हस्तक्षेप।
4. भारत बनाम पाकिस्तान:
- POK और जम्मू-कश्मीर को लेकर एक बार फिर तनाव।
- ड्रोन, घुसपैठ, और सीमा संघर्षों में बढ़ोतरी।
💣 हथियार निर्माता कंपनियां इस खेल की असली खिलाड़ी
आज युद्ध सिर्फ राष्ट्रों की सीमा सुरक्षा या विचारधारा की रक्षा का साधन नहीं रहा। यह बहुराष्ट्रीय हथियार कंपनियों के लिए अरबों डॉलर के लाभ का जरिया बन चुका है। अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन, रेथियॉन, बोइंग डिफेंस, फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन, ब्रिटेन की BAE सिस्टम्स, और इज़राइल की राफेल जैसी कंपनियों का मुनाफा हर बमबारी के साथ बढ़ रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद यूरोप और अमेरिका में हथियारों की बिक्री में 40% से अधिक की वृद्धि देखी गई। एशिया में भारत और चीन दोनों अपनी रक्षा बजट में रिकॉर्ड बढ़ोतरी कर चुके हैं। भारत, जो पारंपरिक रूप से ‘गुटनिरपेक्ष’ रहा है, अब दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक बन चुका है।
SIPRI (Stockholm International Peace Research Institute) के अनुसार:
👉2024 में वैश्विक रक्षा बजट 2.4 ट्रिलियन डॉलर के पार।
👉अमेरिका की हथियार बिक्री में 2023 की तुलना में 15% की वृद्धि।
👉भारत, चीन, सऊदी अरब, और रूस दुनिया के टॉप 5 हथियार आयातक।
🧩 ‘हथियार डिप्लोमेसी’ और मीडिया नैरेटिव्स
दुनिया की सबसे बड़ी लॉबिंग ताकतें अब रक्षा उद्योग से जुड़ी हैं। अमेरिकी सीनेट से लेकर यूरोपीय संसद तक, हथियार निर्माताओं का प्रभाव निर्णायक होता जा रहा है। युद्ध अब अचानक नहीं फूटते, वे डिज़ाइन किए जाते हैं। सैन्य तनाव पैदा किया जाता है, मीडिया में भय फैलाया जाता है, और फिर “रक्षा के नाम पर” अरबों डॉलर के सौदे किए जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र, जो कभी शांति की आखिरी उम्मीद था, अब महाशक्तियों की राजनीतिक रस्साकशी का मंच बन चुका है। रूस वीटो करता है, अमेरिका चुप रहता है, और चीन मौन। युद्ध केवल सैन्य रणनीति नहीं, मीडिया, कूटनीति और हथियार सप्लाई के संगठित नैरेटिव हैं।
कई बार युद्ध की संभावनाएं भी रक्षा उद्योग के मुनाफे का स्रोत बन जाती हैं।
युद्ध की आहटों से स्टॉक मार्केट में हथियार कंपनियों की हिस्सेदारी तेजी से चढ़ती है।
🔍कुछ कौंधते सवाल…
- क्या वैश्विक सुरक्षा परिषद अब केवल ‘बड़ी ताकतों’ के हितों का रक्षक है?
- क्या शांति केवल एक औपचारिक नारा बन चुका है?
- और क्या अगला बड़ा युद्ध हथियार कंपनियों की बैलेंस शीट पर पहले लिखा जाएगा?