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देश में नए आपराधिक कानून लागू होने के बाद कंविक्शन रेट में तेजी से बदलाव, 94% तक पहुंचाने का लक्ष्य

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✍🏻 प्रहरी संवाददाता, नई दिल्ली। देश में न्याय प्रणाली को मजबूत करने और दोषियों को सजा दिलाने की प्रक्रिया को तेज़ व पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम तब उठाया गया, जब केंद्र सरकार ने भारतीय न्याय प्रणाली के तीन प्रमुख कानूनों को नए सिरे से लागू किया। ये तीन कानून—भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम—1 जुलाई 2023 से पूरे देश में लागू हुए। इनका उद्देश्य सिर्फ कानूनी ढांचे को आधुनिक बनाना नहीं, बल्कि देश में कंविक्शन रेट यानी दोषसिद्धि दर को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाना भी है।

वर्तमान में देश में औसतन 54% कंविक्शन रेट दर्ज है, जो अपराधियों को सजा दिलाने की प्रक्रिया में एक बड़ी चुनौती का संकेत देता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि सरकार का लक्ष्य अगले कुछ दशकों में इस दर को 94% तक पहुंचाना है। इसके लिए वैज्ञानिक जांच, वीडियो कांफ्रेंसिंग, गवाहों के डिजिटल बयान, और डेटा-आधारित फैसलों* को न्यायिक प्रक्रिया में अनिवार्य रूप से शामिल किया जा रहा है।

कानून और टेक्नोलॉजी का तालमेल

नए आपराधिक कानूनों के तहत कई तकनीकी उपायों को अनिवार्य किया गया है, जैसे जहां सजा 7 साल या उससे अधिक की है, वहां वैज्ञानिक जांच को अनिवार्य बनाया गया है। राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी (NJA) द्वारा राज्यों के लिए मॉडल SOPs तैयार किए जा चुके हैं, जिन्हें राज्य अपनी जरूरत के अनुसार लागू कर सकते हैं। इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाले जांच अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान है।

आतंकवाद के मामलों में भारत का रिकॉर्ड

आतंकवाद से जुड़े मामलों में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) का रिकॉर्ड गौर करने लायक है। यहां पर कंविक्शन रेट 95% तक पहुंच चुकी है—जो वैश्विक स्तर पर एंटी-टेरर एजेंसियों में सबसे बेहतर मानी जाती है। यह सफलता एजेंसी द्वारा फोरेंसिक सबूत, AI-सहायता प्राप्त विश्लेषण, और प्रोसेक्यूशन की समन्वित रणनीति के चलते संभव हुई है।

बीते वर्षों में संज्ञेय अपराधों में भी दोषसिद्धि दर में धीरे-धीरे सुधार देखा गया है:

– 2018: 66.6%
– 2019: 66.4%
– 2020: 73.4%

 

डिजिटल एकीकरण और निगरानी प्रणाली

केंद्र सरकार ने AI और डेटा एनालिटिक्स की मदद से एक समग्र निगरानी प्रणाली तैयार की है:

  • 100% पुलिस स्टेशन CCTNS से जुड़े हैं—जिसमें 14.19 करोड़ FIR और दस्तावेज उपलब्ध हैं।
  • 22,000 अदालतों में ई-कोर्ट सुविधा शुरू हो चुकी है।
  • 2.19 करोड़ कैदियों का डेटा ई-प्रिजन पोर्टल में है।
  • 1.93 करोड़ मामलों की जानकारी ई-प्रॉसिक्यूशन सिस्टम में दर्ज।
  • 39 लाख फोरेंसिक सबूत ई-फोरेंसिक सिस्टम में अपलोड।
  • 1.53 करोड़ आरोपियों के फिंगरप्रिंट्स NAFIS में स्टोर किए गए हैं।

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