✍🏻 डिजिटल न्यूज डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल बढ़ गई है। समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव 8 अक्टूबर को आज़म खान से मुलाकात करने जा रहे हैं। यह मुलाकात न सिर्फ़ सियासी बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अहम मानी जा रही है। 23 महीने की जेल यात्रा के बाद रिहा हुए आज़म खान अब सपा में अपनी भूमिका को लेकर फिर सुर्खियों में हैं। सपा नेतृत्व अब उनके राजनीतिक पुनर्वास के रास्ते तलाशता दिख रहा है।
अखिलेश यादव की इस मुलाकात को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह कई कयास लगाए जा रहे हैं। सपा के लिए यह संतुलन साधने का समय है। एक तरफ़ आज़म खान जैसे कद्दावर मुस्लिम नेता हैं, तो दूसरी तरफ़ वे मुस्लिम चेहरे हैं जो उनके लंबे अंतराल में उभर कर आए हैं। इन दोनों ध्रुवों के बीच तालमेल बनाना अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती मानी जा रही है।
रामपुर और उसके आसपास के मुस्लिम मतदाताओं पर आज़म खान का गहरा प्रभाव है। ऐसे में सपा यह जोखिम नहीं लेना चाहती कि उनके अलगाव से मुस्लिम वोटों में बिखराव का संदेश जाए। पार्टी चाहती है कि आज़म को सम्मानजनक भूमिका दी जाए ताकि अल्पसंख्यक समुदाय में यह संदेश जाए कि सपा ने उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा।
हालांकि, सपा का शीर्ष नेतृत्व यह भी समझता है कि आज़म खान के तीखे और धार्मिक रूप से संवेदनशील बयानों से हिंदू मतदाताओं में ध्रुवीकरण बढ़ सकता है। ऐसे में अखिलेश यादव मुलाकात के दौरान उन्हें संयमित भूमिका निभाने की सलाह दे सकते हैं।
सीतापुर जेल से रिहाई के बाद आज़म खान ने भले ही सार्वजनिक रूप से सपा पर कोई तीखा बयान नहीं दिया, लेकिन उनकी चुप्पी और राजनीतिक संकेतों ने सपा खेमे में हलचल बढ़ा दी है। अब सबकी निगाहें 8 अक्टूबर की इस मुलाकात पर टिकी हैं, जहां सपा का मुस्लिम नेतृत्व का भविष्य और पार्टी की चुनावी रणनीति, दोनों की दिशा तय हो सकती है।