मुंबई, 20 मई 2022। बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि सीनियर सिटीजन एक्ट की धारा 2 (ए) में ‘बच्चों’ के रूप में बेटा, बेटी, पोता और पोती शामिल हैं, लेकिन बहू का उल्लेख नहीं है। इसलिए, सास-ससुर के लिए गुजारा भत्ता देने का निर्देश बहू को नहीं दिया जा सकता। वह भी तब, जब बहू के पास आय का साधन नहीं हो या उसकी आय का कोई प्रमाण कोर्ट में दाखिल नहीं हो।
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस माधव जामदार की पीठ ने माता-पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी बेटे की बताई और सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल के आदेश को रद्द कर दिया। ट्रिब्यूनल ने बेटे-बहू को मिलकर बुजुर्ग-विधवा को 25 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने को कहा था। कोर्ट ने बेटे-बहू को सपरिवार जुहू स्थित आलीशान बंगला खाली करने के ट्रिब्यूनल के निर्देश को बरकरार रखा।
साथ ही बेटे को इस संपत्ति से बेदखल करने की अपील भी स्वीकार कर ली। केस में 79 और 77 वर्ष की आयु के सीनियर सिटीजन दंपती ने ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया था। ट्रिब्यूनल ने बेटे और बहू को पैतृक बंगला खाली करने और संयुक्त रूप से 25,000 रुपए प्रतिमाह भुगतान का आदेश दिया था।
बहू ने 2019 के इस आदेश का विरोध करते अपनी कोई आय नहीं होने के आधार पर गुजारा भत्ता देने में असमर्थता जताते हुए हाईकोर्ट में अपील की थी। कोर्ट केस चलने के दरम्यान बुजुर्ग की मौत के बाद से उनकी विधवा कई बार व्हील चेयर पर कोर्ट पहुंची थीं।
कोर्ट ने आगे यह भी कहा- ‘बुजुर्ग महिला की दैनिक जरूरतों पर ध्यान देना बेटे-बहू की जिम्मेदारी है। वृद्ध माता-पिता को शांति का जीवन नहीं देना, उनका मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न है।’