उत्तर प्रदेश सरकार को ही देख लीजिए…
सनातनी हिंदुओं के सबसे बड़े मठाधीश सत्ता पर काबिज हैं । बाबा जी ने साल 2024-25 में लगभग 31,000 करोड़ की आय शराब से कमाई है।
मतलब, जनता को नशे में रखो, और राजकोष को होश में। फिर चाहे वो धर्म का नशा हो या अफ़ीम का, दारू का या फिर गांजे का।
और हां, सनातनी बाबा ने अगला टारगेट 60,000 करोड़ का दिया है। जैसे कोई आईपीएल की रन चेज़ कर रहे हों।
आख़िरकार सरकारें वो कर ही दिखा रही हैं, जो हर मदिराप्रेमी वर्षों से मांग रहा था — “शराब को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दो!” नहीं किया गया, लेकिन व्यवहार तो कुछ वैसा ही हो चला है।
तभी तो कोई राज्य 60,000 करोड़ कमा रहा है, कोई ‘ड्राई स्टेट’ होने के बावजूद बोतल में डूबा 34 करोड़ निकाल ला रहा है। वाह सरकार, क्या सोच है!
कभी शराब को सामाजिक बुराई कहकर चुनाव लड़ा जाता था, अब उसी ‘बुराई’ के बूते बजट सुधारा जा रहा है।
मतलब ‘जनता पीए… सरकार जीए!’
उत्तर प्रदेश का हाल फिर देखिए — एक ओर अवैध शराब पर सख्ती की घोषणाएं, दूसरी ओर उसी बोतल से 50 हज़ार करोड़ की वसूली। अवैध को वैध बनाओ और फिर कहो—“देखो, हमने सिस्टम सुधार दिया!” सिस्टम सुधर गया या शराब का सिस्टम ही बना दिया, समझ नहीं आता।
गुजरात, जो संविधान का ड्राय-स्टेट है, वहां भी सरकार होटलों से शराब बेच-बेच कर करोड़ों कमा रही है। वो भी बिना शरमाए! शराबबंदी तो वहीं दिखती है जहां गरीब पिया पकड़ा जाता है, अमीर के गिलास में ‘नीतियों’ का पैग डाला जाता है।
अब ये मत पूछिए कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार का क्या हुआ। भाई साहब, पहले सरकार को ‘हैंगओवर’ से बाहर आने दो। अभी तो “चियर्स टू रेवेन्यू” का जश्न मन रहा है।
जनता को रोज़गार नहीं चाहिए, बस ठेके के सामने बैठने की जगह मिल जाए – और एक सरकार जो कहे: “हर बोतल में है विकास का सपना।”
तो अगली बार जब आप मेडिकल कॉलेज या स्कूल में सुविधाओं की कमी पर सवाल उठाएं, तो ध्यान रहे — सरकार बोतल में मस्त है, और उसका बजट भी!