नई दिल्ली। भ्रष्टाचारी मंत्रियों, नेताओं, सासंदों व जन प्रतिनिधियों के खिलाफ प्राप्त शिकायतों पर लोकपाल कितनी सजगता से कार्य कर रहे हैं, इसकी जानकारी सरकार के पास भी नहीं है। भारत के पहले लोकपाल की नियुक्ति 2019 में हुई थी, लेकिन अब तक लोकपाल ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट सरकार के पास जमा नहीं कराई है। पारदर्शी प्रणाली के साथ ही डिजिटल प्रशासन का नारा देनेवाली सरकार का लोकपाल दावा भी खोखला साबित हो रहा है।
भ्रष्टाचार निरोधक संस्था लोकपाल की ओर से वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति एवं संसद को पेश करनी पड़ती है। लेकिन दोनों सदनों में लोकपाल ने ऐसी कोई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है। सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा को यह जानकारी दी। बता दें कि लोकपाल 2019 में अस्तित्व में आया था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 23 मार्च 2019 को न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को लोकपाल के अध्यक्ष के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई थी। यह सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच का शीर्ष निकाय है।
कार्मिक राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया, ‘लोकपाल एक स्वतंत्र सांविधिक निकाय है जो 2013 के लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम के तहत स्थापित किया गया। इस अधिनियम की धारा 48 के अनुसार, लोकपाल को उसके द्वारा किए गये कामों के बारे में एक वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को पेश करनी होती है जो संसद के दोनों सदनों में भी प्रस्तुत की जाती है।’ उन्होंने कहा, ‘ऐसी कोई रिपोर्ट पेश नहीं की गयी।’ लोकपाल के आठ सदस्यों को न्यायमूर्ति घोष ने 27 मार्च 2019 को शपथ दिलवाई थी। लोकपाल को वर्ष 2019-20 में 1,427 शिकायतें प्राप्त हुई थीं, जिनमें 613 शिकायतें राज्य सरकार के अधिकारियों एवं चार शिकायतें केन्द्रीय मंत्रियों एवं सांसदों से संबंधित हैं। आंकड़ों के तहत अप्रैल से दिसंबर 2020 के बीच लोकपाल को 89 शिकायतें प्राप्त हुई थीं, जिनमें तीन शिकायतें संसद सदस्यों के खिलाफ थीं।