भारतीय बैंकों से करीब 9,000 करोड़ रुपये का कर्ज लेकर मार्च 2016 में भारत से फरार हुए थे माल्या
✍🏻 डिजिटल न्यूज डेस्क, नई दिल्ली। साल 2016 में भारत छोड़कर लंदन भागे उद्योगपति विजय माल्या के प्रत्यर्पण को लेकर भारतीय एजेंसियों की कानूनी जंग अब तक करोड़ों रुपये की कीमत वसूल चुकी है। सरकारी दस्तावेजों और अदालती कार्यवाही से मिली जानकारियों के मुताबिक, माल्या को भारत वापस लाने की यह कवायद न सिर्फ लंबी खिंच गई है, बल्कि इसमें भारतीय करदाताओं का अच्छा-खासा पैसा भी झोंक दिया गया है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिश अदालतों में चल रही प्रत्यर्पण प्रक्रिया के तहत भारत सरकार ने क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) को प्रतिनिधित्व सौंपा, जिसने वहां की अदालत में माल्या के खिलाफ पक्ष रखा। इस प्रक्रिया में अनुवाद, वकीलों की फीस, दस्तावेजी कार्यवाही और कोर्ट शुल्क जैसे तमाम मदों में खर्च किया गया। भारत की ओर से मांगे गए कानूनी खर्चों की राशि कम से कम 2.6 लाख पाउंड यानी करीब 2.6 करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी।
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माल्या ने खुद की कानूनी रक्षा के लिए लंदन में हाई-प्रोफाइल वकीलों की टीम खड़ी की थी। लंदन की अदालत ने उन्हें अपने रहने और कानूनी खर्चों को पूरा करने के लिए अपनी जमा राशि में से लगभग 11 लाख पाउंड (लगभग 11 करोड़ रुपये) निकालने की अनुमति भी दी है। ब्रिटिश अदालत ने एक फैसले में यह भी कहा कि उन्हें 13 भारतीय बैंकों को उनकी अपील की लागत के रूप में करीब 7.5 लाख पाउंड, यानी लगभग 7.5 करोड़ रुपये चुकाने होंगे।
मामले में ब्रिटेन के हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और फिर यूरोपीय मानवाधिकार अदालत तक की सीढ़ियां तय हो चुकी हैं। बावजूद इसके, प्रत्यर्पण अब भी लंबित है। प्रत्यर्पण आदेश तो काफी पहले आ चुका है, लेकिन कानूनी दांव-पेंचों और अपीलों के चलते माल्या को भारत लाने की प्रक्रिया अधर में अटकी हुई है।
इस बीच, भारतीय एजेंसियों का प्रतिनिधित्व और कानूनी तैयारी निरंतर जारी है, जिसमें लगातार खर्च भी हो रहा है। लंदन की अदालतों में यह लड़ाई कब तक चलेगी, इसका कोई ठोस जवाब फिलहाल सामने नहीं है।