‘सरकार प्रॉपर्टी पर 50% लेती है टैक्स, इसलिए लोग नहीं खरीद पाते हैं घर’
✍🏻 डिजिटल डेस्क, मुंबई। देश में हर व्यक्ति का अपने घर का सपना होता है, लेकिन यह सपना आज भी करोड़ों लोगों के लिए दूर की बात बना हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि सस्ते घरों की राह में सबसे बड़ी रुकावट खुद सरकार की टैक्स नीति है। हाल ही में एक कार्यक्रम में एक वरिष्ठ रियल एस्टेट विशेषज्ञ ने खुलासा किया कि जीएसटी के अलावा भी कई तरह के छिपे हुए टैक्स लगाए जाते हैं. किसी भी प्रॉपर्टी की कुल कीमत का लगभग 50% हिस्सा विभिन्न सरकारी टैक्स और शुल्कों में चला जाता है।
उन्होंने बताया कि निर्माणाधीन किफायती घरों पर भले ही 1% जीएसटी है, लेकिन इसके अलावा स्टांप ड्यूटी (5-8%), रजिस्ट्रेशन शुल्क, नगर निगम शुल्क, विकास उपकर और अतिरिक्त फ्लोर एरिया के लिए प्रीमियम जैसे कई शुल्क जोड़ने पर स्थिति गंभीर हो जाती है। आंकड़े बताते हैं कि बड़े शहरों में किसी भी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट की कुल लागत का 30 से 50 प्रतिशत हिस्सा केवल सरकारी शुल्क में चला जाता है।
इसके साथ ही जमीन की ऊंची कीमतें भी एक बड़ी चुनौती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, महानगरों में किसी प्रोजेक्ट की लागत का 50-85% हिस्सा केवल जमीन खरीदने में खर्च हो जाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि रेलवे, रक्षा मंत्रालय, पोर्ट ट्रस्ट और नगर निगमों के पास जो खाली जमीन है, उसका उपयोग किफायती घरों के निर्माण में किया जाना चाहिए।
इतना ही नहीं, महंगे लोन और कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर भी इस समस्या को और गंभीर बनाते हैं। यदि सस्ते घर शहर से 40-50 किलोमीटर दूर बनाए जाते हैं, लेकिन वहां तक कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट न हो, तो लोगों के लिए वह घर व्यावहारिक नहीं रह जाता।
विशेषज्ञ ने सरकार से आग्रह किया कि वह न सिर्फ टैक्स में कटौती करे, बल्कि खाली पड़ी जमीन को किफायती दरों पर उपलब्ध कराए और रियल एस्टेट डेवलपर्स को प्रोत्साहन दे। जब तक ये बुनियादी बदलाव नहीं होते, तब तक आम आदमी के लिए सस्ते घर का सपना अधूरा ही रहेगा।