✍🏻 प्रहरी संवाददाता, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को घटी जूताकांड की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की ओर 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर द्वारा जूता फेंकने की कोशिश न केवल न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाली थी, बल्कि यह उस सवर्ण मानसिकता का भी प्रतीक बन गई जो अब भी बराबरी के विचार से असहज है।
71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने जब मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की, तो यह सिर्फ एक अनुशासनहीन हरकत नहीं थी, बल्कि यह उस सोच की गूँज थी जो अब भी मानती है कि सत्ता और सम्मान सिर्फ ऊँची जातियों की बपौती हैं।
दरअसल, यह मामला खजुराहो विष्णु मूर्ति पुनर्स्थापना विवाद से जुड़ा था। मुख्य न्यायाधीश गवई की टिप्पणियों से नाराज होकर वकील ने अदालत की गरिमा को तार-तार करने की कोशिश की। अदालत में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी वकील को काबू कर लिया।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने इसे “न्यायिक गरिमा पर सीधा हमला” बताया, वहीं बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने आरोपी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया और कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
बीसीआई के आदेश के मुताबिक, वकील राकेश किशोर अब किसी भी अदालत में पेश नहीं हो सकेंगे। बार काउंसिल ऑफ दिल्ली से भी रिपोर्ट मांगी गई है और सुप्रीम कोर्ट समेत सभी उच्च न्यायालयों को आदेश भेजा गया है कि आरोपी वकील का निलंबन प्रभावी रहे।
इस बीच, सीजेआई बी.आर. गवई ने पूरी घटना पर असाधारण संयम दिखाते हुए कहा, “हम ऐसे मामलों से विचलित नहीं होंगे, जस्ट इग्नोर।”
वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह घटना सोशल मीडिया में फैली गलत सूचनाओं का नतीजा है, लेकिन यह सुखद है कि देश के मुख्य न्यायाधीश ने इसे गरिमा और उदारता के साथ संभाला।
यह विडंबना है कि आज भी कुछ लोग न्याय की ऊँचाई से नहीं, बल्कि अपनी जाति की ऊँचाई से चीजें नापते हैं। जब एक दलित मूल के सीजेआई के सामने वही “सवर्ण विशेषाधिकार” उछलता है, जो हमेशा से व्यवस्था पर वर्चस्व जमाना चाहता रहा है, तब यह घटना केवल अदालत की नहीं, बल्कि समाज की मानसिक गिरावट की कहानी बन जाती है।
जूता फेंकने वाला हाथ सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं था, वह उस सोच का प्रतीक था जो बराबरी के विचार से अब भी असहज है।