✍🏻 डिजिटल न्यूज डेस्क, नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग द्वारा देशभर में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया पर बड़ा कदम उठाते हुए इसकी निगरानी अपने हाथों में ले ली। शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया और देश के सभी उच्च न्यायालयों में इस मुद्दे से जुड़े चल रहे मामलों की कार्यवाहियों पर रोक लगाने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि अब यह मसला एकीकृत रूप से सुप्रीम कोर्ट में ही सुना जाएगा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की द्विसदस्यीय पीठ ने राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (ADR) की याचिकाओं पर सुनवाई की।
इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि मतदाता सूची का यह पुनरीक्षण जल्दबाजी और अव्यावहारिक तरीके से लागू किया जा रहा है, जिससे मतदाताओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो सकता है। शीर्ष अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 26 नवंबर को तय की है और चुनाव आयोग से विस्तृत जवाब मांगा है।
सुनवाई के दौरान द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि आयोग द्वारा निर्धारित एक समान समय-सीमा सभी राज्यों के लिए व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि तमिलनाडु में नवंबर-दिसंबर के दौरान भारी बारिश, राहत कार्यों और त्योहारों के कारण प्रशासनिक संसाधनों की कमी रहती है, ऐसे में एक महीने की अवधि में मतदाता सूची संशोधन को “हास्यास्पद कवायद” कहा जा सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि डिजिटल प्रणालियों की सीमित पहुंच गरीब और ग्रामीण मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकती है।
एडीआर की ओर से पेश प्रशांत भूषण ने मुद्दे को संवैधानिक दायरे में उठाते हुए कहा कि नागरिकता प्रमाण की मांग चुनाव आयोग को अप्रत्यक्ष रूप से “छद्म एनआरसी” की दिशा में ले जा रही है। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि नागरिकता की जांच का अधिकार आयोग को न दिया जाए, क्योंकि यह केवल केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने हालांकि याचिकाकर्ताओं की आशंकाओं पर सवाल उठाते हुए कहा कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण कोई पहली बार नहीं किया जा रहा है और संस्थान को अपने अधिकार क्षेत्र में सुधार का अवसर मिलना चाहिए। वहीं न्यायमूर्ति बागची ने डेटा गोपनीयता का मुद्दा उठाया और सुझाव दिया कि मतदाता सूची को मशीन-रीडेबल बनाने के प्रस्ताव पर सावधानीपूर्वक विचार हो, ताकि निजी जानकारी का दुरुपयोग न हो।
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने अदालत से विभिन्न उच्च न्यायालयों में चल रहे मामलों पर रोक लगाने का अनुरोध किया, जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। इस बीच तमिलनाडु की प्रमुख विपक्षी पार्टी अन्नाद्रमुक ने भी आयोग के संशोधन अभियान का समर्थन किया और इसे पारदर्शिता बढ़ाने वाला कदम बताया।
