विलफुल डिफॉल्टर घोषित करने का तर्कसंगत आदेश जारी करें बैंक: हाई कोर्ट
डिजिटल न्यूज डेस्क, मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के मुख्य परिपत्र (main direction) के तहत किसी संस्था या व्यक्ति को इरादतन चूककर्ता (विलफुल डिफॉल्टर) घोषित करने से पहले तर्कसंगत आदेश पारित करना चाहिए।
IL&FS के मामले पर हो रही है सुनवाई
जस्टिस बी.पी. कुलाबावाला और जस्टिस सोमशेखर सुंदरेशन की बेंच ने आईएल एंड एफएस फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (आईएफआईएन) के पूर्व संयुक्त प्रबंध निदेशक मिलिंद पटेल की याचिका पर यह फैसला सुनाया है।
होते हैं गंभीर सिविल परिणाम, सबूत साझा किए जाए
फैसले में स्पष्ट किया गया है कि डिफॉल्टर घोषित होने के गंभीर सिविल परिणाम सामने आते है। डिफॉल्टर घोषित होने के बाद संबंधित व्यक्ति वित्तीय क्षेत्र से बाहर हो जाता है, उसे किसी भी बैंक या वित्तीय संस्थान से कोई सुविधाएं नहीं मिलतीं। इसलिए बैंकों को इस संबंध में अपने अधिकारों का इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए।
बेंच ने कहा कि ऐसे में बैंक को विलफुल डिफॉल्टर घोषित करने के लिए इस्तेमाल किए गए सबूत को जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले व्यक्ति के साथ साझा करना होगा। डिफॉल्टर घोषित करने से जुड़ी प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए। साथ ही बैंक की आइडेंटिफिकेशन और रिव्यू कमिटी को भी तर्कसंगत आदेश की प्रति जरूरी सामग्री के साथ डिफॉल्टर को देना आवश्यक है।
क्या है मामला
इस याचिका में फरवरी 2023 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई है। आरबीआई के 2015 के सर्कुलर के तहत आईएफआईएन फर्म और उसके प्रमोटरों को विलफुल डिफॉल्टर घोषित किया गया था। बेंच ने कहा कि इस मामले में जारी आदेश में कारणों का उल्लेख नहीं किया गया है। नोटिस में लिखी गई चीजों को फाइनल ऑर्डर में समाहित कर लिया गया है।
बैंक की ओर से पेश होने वाले वकील ने बेंच से कहा कि बैंक इस केस में जारी आदेश को वापस लेगा और कारण बताओ के पड़ाव से नए सिरे से मामले की कार्यवाही को शुरू करेगा।