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सरकार ने रक्षा डील में ऑफसेट क्लॉज ख़त्म किया

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मोदी सरकार के ऑफसेट पॉलिसी पर सीएजी ने हाल ही में उठाए थे सवाल

2005 से 2018 तक विदेशी कंपनियों से 66 हजार करोड़ रुपये के कुल 46 ऑफसैट हुए साइन.

किसी भी मामले में कोई भी टेक्नोलॉजी नहीं ​की गई ट्रांसफर

नई दिल्ली। रक्षा डील में ऑफसेट पॉलिसी पर घिरी मोदी सरकार ने नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी)-2020 में बड़ा बदलाव कर दिया है। सरकार ने अपनी ऑफसेट पॉलिसी को ही बदल दिया है। इसके तहत अब सरकार  से सरकार, अंतर-सरकार और एकल विक्रेता से रक्षा खरीद में कोई ऑफसेट पॉलिसी लागू नहीं होगी। राफ़ेल डील के दौरान, ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट में डीआरडीओ को कावेरी इंजन की तकनीक देकर 30 प्रतिशत ऑफसेट पूरा करने की बात तय हुई थी, लेकिन अभी तक फ्रांस की कंपनी की तरफ से  यह वादा पूरा नहीं हो पाया  है।

राफ़ेल सौदे में कैग की रिपोर्ट

दरअसल, फ्रांस के साथ राफेल सौदे में ऑफसेट पॉलिसी पूरी न होने पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी रिपोर्ट में काफी सवाल उठाए थे। इस रिपोर्ट को संसद में पेश किया गया था। इसके बाद सरकार ने इस पॉलिसी को ही बदल दिया।

विशेष सचिव और महानिदेशक (अधिग्रहण) अपूर्वा चंद्रा ने बताया कि ऑफसेट दिशानिर्देशों में कुछ जरूरी  बदलाव किए गए हैं। इसके तहत अब से सरकार-से-सरकार, अंतर-सरकार और एकल विक्रेता रक्षा में कोई ऑफसेट पॉलिसी नहीं होगी। रक्षा मंत्रालय ने ऑफसेट पॉलिसी के जरिए विदेशी निर्माताओं से टेक्नॉलोजी हासिल करने में विफलता के बाद यह फैसला किया है।

 

अनुबंध राशि का 30 फीसदी निवेश अनिवार्य

बता दें कि अब तक इसी ऑफसेट पॉलिसी के चलते , फ्रांस से 36 राफेल जेट की खरीद के मामले में निर्माता डसॉल्ट एविएशन और एमबीडीए को भारतीय रक्षा क्षेत्र में अनुबंध राशि का 30 प्रतिशत निवेश करने के लिए अनिवार्य किया गया था। राफेल सौदे में जहां 36 फाइटर जेट 59,000 करोड़ रुपये में खरीदे गए, वहीं ऑफसेट क्लॉज 50 फीसदी था।

डीएपी 2020 में बदलाव

बता दें कि भारत की ऑफसेट पॉलिसी के अनुसार विदेशी कंपनियों को अपने अनुबंध का 30 प्रतिशत हिस्सा भारत में रिसर्च या उपकरणों पर खर्च करना होता है। पुरानी ​रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया में रक्षा मंत्रालय ने यह ऑफसेट नीति विदेशी कंपनियों से 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के रक्षा सौदों के लिए ही बनाई थी, जिसे ​अब डीएपी-2020 में बदल दिया गया है।

ऑफसेट पॉलिसी का पालन नहीं

कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि ​राफेल सौदे के अलावा साल ​​2015 से लेकर अब​ ​तक​ मोदी सरकार के कई मामलों में ​ऑफसेट पॉलिसी​ ​का पालन नहीं हुआ है। ऑफसेट का समझौता पूरा ​न होने पर ​​पॉलिसी में ऐसा कोई  भी नियम नहीं है, जिसके तहत विदेशी कंपनी पर कोई जुर्माना लगाया जा सके​।

कोई टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं

बता दें कि साल 2005 से 2018 तक विदेशी कंपनियों से 66 हजार करोड़ रुपये के कुल 46 ऑफसैट साइन हुए। ​ इनमें से 90 फीसदी मामलों में कंपनियों ने ऑफ​सेट के बदले में सिर्फ सामान ही खरीदा है, किसी भी मामले  में कोई भी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं ​की गई ​है।  इस विफलता को देखते हुए अब भारत सरकार ने ऑफसेट पॉलिसी को ही बदल दिया है।

 


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