डिजिटन न्यूज डेस्क, मणिपुर। उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि इंटरनेट सेवाएं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा हैं और राज्य सरकार पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध जारी नहीं रख सकती। न्यायालय इंटरनेट प्रतिबंध को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।
मणिपुर हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति गोलमेई गैफुलशिलु काबुई की खंडपीठ ने हिंसा से प्रभावित नहीं होने वाले क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाएं बहाल करने के अपने पहले के आदेशों का पूरी तरह से पालन नहीं करने के लिए सरकार से सवाल किया।
हालांकि, अदालत को सूचित किया गया कि राज्य सरकार ने मोबाइल इंटरनेट प्रतिबंध को 3 दिसंबर तक बढ़ा दिया है, उन क्षेत्रों को छोड़कर जहां इसे पहले हटा दिया गया था।
पीठ ने कहा कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा की गंभीर चिंताओं वाले क्षेत्रों में इंटरनेट बहाल नहीं करने के कारण को समझती है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के अधिकारों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। न्यायमूर्ति मृदुल ने कहा कि हम आपको कानून के अनुसार उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति दे रहे हैं, लेकिन आप इस अधिकार को खत्म नहीं कर सकते। न्याय तक पहुंच केवल एक नारा नहीं है। आज कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता है कि इंटरनेट सेवाएं उचित प्रतिबंधों के साथ भाषण की स्वतंत्रता का एक हिस्सा हैं।
पीठ ने सरकार से पूछा कि अगर हिंसा प्रभावित क्षेत्र में किसी व्यक्ति को शिकायत दर्ज कराने की जरूरत है तो वह कहां जाएगा और किससे संपर्क करेगा। अदालत ने यह भी कहा कि जब लोगों को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होने की अनुमति दी जाएगी, तो यह पता चल जाएगा कि राज्य के किन क्षेत्रों को राहत की आवश्यकता है।
राज्य के दावे को ध्यान में रखते हुए कि अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य स्थिति लौट आई है, अदालत ने कहा, “जहां तक हम जानते हैं, कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, कुल मिलाकर राज्य शांतिपूर्ण है, तो सेवाओं को बहाल क्यों नहीं किया जाना चाहिए? राज्य को यह क्यों कहना पड़ रहा है कि स्थिति सामान्य नहीं है। राज्य के अनुसार स्थिति सामान्य है। इसलिए सभी को बता दें कि इन क्षेत्रों को छोड़कर स्थिति सामान्य है।”