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आरटीआई एक्ट की दुर्दशा देख भड़का सुप्रीम कोर्ट, केंद्र को दिया निर्देश

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सूचना का अधिकार अधिनियम यानी आरटीआई एक्ट को जब 15 जून 2005 में लागू किया गया, तब एकबारगी ऐसा लगा जैसे सरकारी दफ्तरों से भ्रष्टाचार, लाल फीताशाही, लेट लतीफी जैसी बुराइयां अब खत्म करने का लोगों के पास एक घातक हथियार मिल गया है। लेकिन अब देश की सर्वोच्च अदालत ही यह कह रही है कि आरटीआई एक्ट की धार बड़ी तेजी से भोथरी होती जा रही है। इसे अब एक निष्क्रिय और बेकार कानून की श्रेणी में तब्दील किया जा रहा है।

हाइलाइट्सः

  • सूचना के अधिकार कानून की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी
  • महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा मामले हैं पेंडिंग, 115,000 केसों के लिए हैं 4 आयुक्त
  • याचिकाकर्ता ने सूचना आयुक्त के खाली पदों की राज्यवार जानकारी दी

डिजिटल न्यूज डेस्क, नई दिल्ली। सूचना के अधिकार के तहत लोगों को आसानी से जानकारियां नहीं मिल पा रही हैं। सीआईसी में सूचना आयुक्तों के 11 पदों में से सात खाली हैं, जबकि राज्यों की भी हालत ठीक नहीं है। ऐसे में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि वे रिक्तियों की अधिसूचना जारी करने और उन्हें भरने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए तत्काल कदम उठाएं।

सर्वोच्च न्यायालय ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी को निर्देश दिया कि वो केंद्र सरकार को सूचना आयुक्तों के स्वीकृत पदों, रिक्तियों की संख्या, अगले वर्ष 31 मार्च तक जो रिक्तियां होंगी, उन सब के आंकड़े जुटाएं। साथ ही, केंद्र को आरटीआई एक्ट के तहत इन निकायों के सामने लंबित शिकायतों और अपीलों से संबंधित जानकारी एकत्र करने का निर्देश भी देने को कहा। केंद्र से तीन सप्ताह में एक रिपोर्ट मांगी।

बता दें कि तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने शासन-प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के मकसद से सार्वजनिक प्राधिकरणों को इस दायित्व से बांध दिया गया था कि यदि आम कोई जानकारी मांगे, तो उसे सुगमता से मुहैया कराई जाए। लेकिन सत्ता पलटते ही इस कानून की ऐसी दुर्दशा हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट को भी निराशा जतानी पड़ी। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों में बड़े पैमाने पर पद खाली हैं, जिससे जनता की शिकायतों को दूर करने में असमर्थ हैं।

तीन सदस्यीय पीठ कर रही सुनवाई

वकील प्रशांत भूषण ने प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायधीश जेबी पारदीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्रा की पीठ के सामने सामाजिक कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज की याचिका पर दलील दी। उन्होंने बताया कि सीआईसी में सूचना आयुक्तों के 11 पदों में से सात खाली हैं और मौजूदा सूचना आयुक्त नवंबर में रिटायर होने वाले हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सूचना आयोग और भी बुरी स्थिति में हैं।

याचिकाकर्ता अंजली भारद्वाज ने अदालत को बताया कि महाराष्ट्र राज्य सूचना आयोग के पास कोई प्रमुख नहीं है और यह केवल चार आयुक्तों के साथ काम कर रहा है, जबकि 1 लाख 15 हजार से अधिक अपील/शिकायतें लंबित हैं। झारखंड राज्य सूचना आयोग मई 2020 से ही काम नहीं कर रहा है। वहां सूचना आयुक्तों के सभी 11 पद खाली हैं। तेलंगाना राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों के सभी पद फरवरी जबकि त्रिपुरा में जुलाई 2021 में खाली हो गए।

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