बेलगाम बेहिसाब अपराध
देश में कानून व्यवस्था कितनी चरमराई हुई है, यह अब जग जाहिर है। उत्तर प्रदेश में खासतौर पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों का जैसा सिलसिला चल पड़ा है, उसने इस राज्य को महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित प्रदेश में शुमार कर दिया है। यूपी सरकार के मुखिया की ओर से किए गए ‘न्यूनतम अपराध’ के दावे की पोल खुल गई है।
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में बीस वर्षीय युवती से सामूहिक बलात्कार और बर्बरता के बाद उसकी मौत एवं रात को ही प्रशासन की ओर से उसके शव को जला देने की जो खबर आई है, वह राज्य सरकार के अपराधों पर काबू पा लेने के तमाम दावों की पोल खोल दे रही है। हाथरस की घटना के बाद उत्तर प्रदेश के बलरामपुर, आजमगढ़ और बुलंदशहर से भी गैंगरेप की बर्बर खबरें सामने आई है। महिला अत्याचार व अपराध के बढ़ते आंकड़े प्रशासन की नाकामी की गवाही दे रहे हैं।
युवतियों के साथ अपराध की जो प्रकृति है, वह किसी भी संवेदनशील इंसान को झकझोर देने के लिए काफी है। यह चिंताजनक बात है कि ग्रामीण इलाकों में कमजोर सामाजिक पृष्ठभूमि से होना ही अपराध का शिकार होने की स्थितियां बना दे रही हैं। आखिर क्या कारण है कि अपराध को अंजाम देने वाले आरोपियों को यह सब करने से पहले एक बार भी यह हिचक नहीं हुई कि वे क्या करने जा रहे हैं?
विडंबना यह है कि जिस पुलिस महकमे को घटना की प्राथमिक सूचना मिलते ही सक्रिय होकर कार्रवाई करनी चाहिए थी, वह शुरुआत से ही घटना की लीपापोती में जुट जा रही है। मामले को दबाने की कोशिश की जाती है। पुलिस का यह रवैया कोई हैरानी नहीं पैदा करता है, क्योंकि बलात्कार और हत्या जैसे मामलों में आमतौर पर कमजोर तबकों के पीड़ितों को यही झेलना पड़ता है।
राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे खतरनाक हालत में पहुंच चुका है। समाज के कमजोर तबकों की महिलाओं से बलात्कार और उनकी हत्या की घटनाएं जिस तरह लगातार आने लगी हैं, उससे यह सवाल उठा है कि आखिर राज्य सरकार इन अपराधों की रोकथाम के लिए क्या कर रही है! जबकि सत्ता में आने के बाद सरकार का सबसे बड़ा दावा यही था कि एंटी-रोमियो दस्ते का गठन और विशेष हेल्पलाइन महिलाओं के खिलाफ अपराधों को खत्म कर देगा।
लेकिन हकीकत अब दुनिया के सामने है। आज हालत यह है कि राज्य के किसी हिस्से से अक्सर बलात्कार और हत्या की ऐसी घटना सामने आ रही है, जो राज्य सरकार के ‘न्यूनतम अपराध’ के दावों को आईना दिखाती है।
दिल्ली में निर्भया रेप कांड के बाद जैसी सामाजिक व राजनीतिक जागरूकता देखने में आई थी, उससे एक उम्मीद जगी थी कि शायद देश में अब महिलाओं को इस तरह की त्रासद घटनाओं से नहीं गुजरना पड़ेगा। लेकिन न्याय पालिका की लंबी प्रक्रिया व पुलिस प्रशासन की लचर व्यवस्था ने उस आस को चकनाचूर कर दिया है।