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‘राजनीति वर्चस्व रखने वाले ‘मराठा समुदाय’ को पिछड़ा नहीं माना जा सकता’

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10% मराठा आरक्षण के खिलाफ दायर याचिकाओं पर हाई कोर्ट में सुनवाई शुरू

डिजिटल न्यूज़ डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट में मराठा समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के फ़ैसले के खिलाफ़ सुनवाई शुरू हो गई है। बुधवार को एक याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर नारायणन ने कहा कि मराठा समुदाय हमेशा से समाज की मुख्यधारा में रहा है। महाराष्ट्र में राजनीतिक वर्चस्व रखने वाले इस समुदाय को पिछड़ा नहीं माना जा सकता है।

पिछले दफ़े सुप्रीम कोर्ट ने जब सरकार के आरक्षण से जुड़े फैसले को रद्द किया था, तो मराठा कम्युनिटी को हाशिए में पड़ा वर्ग मानने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा किमहाराष्ट्र के गठन के बाद 25 मुख्यमंत्रियों में से 13 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से ही हैं। इसके अलावा, प्रदेश के 24 मेडिकल कॉलेज में से 17 मेडिकल कॉलेज मराठा समुदाय के हैं। राज्य की 161 शुगर फैक्ट्री में 81 शुगर फैक्ट्री के चेयरमैन मराठा समुदाय के हैं। साथ ही को-ऑपरेटिव क्षेत्र में भी समुदाय का दबदबा है, ऐसे में कैसे इस समुदाय को पिछड़ा कहा जा सकता है।

याचिकाकर्ता की दलील थी कि मराठा समुदाय को 10% आरक्षण देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई आरक्षण की 50% सीमा का उल्लंघन करता है। इसलिए आरक्षण से जुड़े सरकार का फ़ैसला असंवैधानिक है, लिहाज़ा इसे रद्द कर दिया जाए।
इन दलीलों को सुनने के बाद चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय की अगुवाई वाली पूर्ण पीठ ने कहा कि हमारे पास समय का संकट है। इसलिए सभी पक्षकार कम से कम समय में अपनी बात को रखें। अदालत अब सोमवार को सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
बता दें कि। मराठा आरक्षण के फैसले के खिलाफ एडवोकेट जयश्री पाटील सहित कुल 18 लोगों की ओर से याचिकाएं कोर्ट में दायर की गई हैं।


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