केंद्र ने बहस तीन मुद्दों तक सीमित रखने की मांग की
याचिकाकर्ता बोले – यह ‘वक्फ पर कब्जे’ की बड़ी साजिश
✍🏻प्रहरी संवाददाता, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तीखी बहस हुई। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें दीं।
कपिल सिब्बल ने शुरुआत से ही वक्फ कानून में हुए संशोधन को धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 27 का सीधा उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि वक्फ की परिभाषा बदलने और गैर-मुस्लिम को वक्फ बोर्ड में शामिल करने का प्रावधान पूरी व्यवस्था को असंवैधानिक बना देता है।
सीजेआई गवई ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि “जब तक याचिकाकर्ता एक मजबूत संवैधानिक आधार नहीं बनाते, तब तक कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करेगा।” यह कहकर कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। सिब्बल ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह मामला वक्फ संपत्तियों पर बड़े पैमाने पर कब्जे से जुड़ा है।
सरकार की तरफ से मेहता ने स्पष्ट किया कि कोर्ट ने पहले ही तीन मुद्दों को चिह्नित किया था और बहस उन्हीं तक सीमित रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता अब इनसे आगे के मुद्दे उठाकर बहस को भटका रहे हैं। उन्होंने मांग की कि जब तक अंतिम सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक वक्फ संपत्तियों की डि-नोटिफिकेशन प्रक्रिया पर रोक जारी रहनी चाहिए।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सुनवाई को टुकड़ों में नहीं किया जा सकता और मामला एक व्यापक संवैधानिक समीक्षा की मांग करता है। वहीं, सिब्बल ने जोर दिया कि यह कानून वक्फ संपत्तियों पर ‘संस्थागत कब्जा’ करने की कवायद है।
केंद्र ने अपने 1,332 पन्नों के हलफनामे में दलील दी कि वक्फ संपत्तियों में अनियंत्रित वृद्धि को रोकने के लिए यह संशोधन आवश्यक था। लेकिन AIMPLB और अन्य याचिकाकर्ता इस डेटा को ग़लत बताते हुए कानून को खारिज करने की मांग कर रहे हैं। सुनवाई अभी जारी है।