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IRCTC ने वेबसाइट मेंटेनेंस के नाम पर तीन साल में यात्रियों से वसूले 2619 करोड़

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दावा- वेबसाइट की ‘मेंटेनेंस’, ‘अपकीप’ और ‘रनिंग’ में उपयोग किया गया

✍🏻 प्रहरी संवाददाता, मुंबई। भारतीय रेलवे की ‘नवरत्न’ कंपनी IRCTC ने अपनी वेबसाइट के रखरखाव और संचालन के नाम पर बीते तीन वर्षों में यात्रियों से 2619 करोड़ रुपये वसूले हैं। यह राशि ‘कन्वीनियंस फीस’ के रूप में IRCTC ने ऑनलाइन टिकट बुकिंग करने वाले यात्रियों से ली है।

सूचना के अधिकार (RTI) के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में IRCTC ने बताया कि वित्त वर्ष 2022-23 में 802 करोड़ रुपये, 2023-24 में 863 करोड़ रुपये और 2024-25 में 954 करोड़ रुपये यात्रियों से कन्वीनियंस फीस के तौर पर वसूले गए। यह शुल्क सीधे तौर पर वेबसाइट की ‘मेंटेनेंस’, ‘अपकीप’ और ‘रनिंग’ में उपयोग किया गया है।

IRCTC के अनुसार, यह शुल्क सिर्फ ऑनलाइन टिकट बुकिंग पर लागू होता है। स्लीपर क्लास के टिकट पर ₹15 + GST, जबकि एसी श्रेणी में ₹30 + GST वसूला जाता है। UPI या BHIM जैसे माध्यमों से भुगतान करने पर ₹10 से ₹20 + GST तक की अलग शुल्क प्रणाली लागू है। यह शुल्क नॉन-रिफंडेबल होता है।

आरटीआई आवेदनकर्ता प्रफुल्ल सारडा ने 2004 से अब तक वसूली गई कुल कन्वीनियंस फीस का ब्योरा मांगा था, जिसे “डेटा भारी होने” का हवाला देते हुए IRCTC ने देने से इनकार कर दिया। नवरत्न कंपनी ने जवाब में केवल तीन वर्षों का आंकड़ा साझा किया।
बता दें कि IRCTC की वेबसाइट से औसतन प्रतिदिन 12.38 लाख टिकट बुक किए जाते हैं, यानी हर साल 45 करोड़ से अधिक टिकट सिर्फ इस पोर्टल से जारी होते हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट की तकनीकी खामियां, भुगतान विफलता और बार-बार सर्वर डाउन जैसी शिकायतें आम बनी रही हैं।

IRCTC का दावा है कि ऑफलाइन टिकटिंग का विकल्प उपलब्ध है, लेकिन भारतीय रेलवे के कुल ऑनलाइन टिकट बुकिंग का 83% हिस्सा IRCTC के पास ही है। बाकी 17% निजी एजेंटों और ट्रैवल ऑपरेटर्स में बंटा हुआ है।

कंज्यूमर लॉ फोरम और डिजिटल राइट्स संगठनों ने इस पर गंभीर आपत्ति जताई है।  संगठनों का कहना है, ‘यह खुले तौर पर यात्रियों का आर्थिक दोहन है। IRCTC को सिर्फ एक वेबसाइट नहीं, बल्कि एक राजस्व मशीन की तरह चलाया जा रहा है, जिसमें जवाबदेही का कोई मॉडल नहीं है।’

रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘IRCTC के पास देश का सबसे बड़ा टिकटिंग नेटवर्क है, लेकिन वेबसाइट की परफॉर्मेंस उसके खर्च के अनुपात में नहीं है। इतने खर्च में तो देश का डिजिटल रेल इंफ्रास्ट्रक्चर ही खड़ा हो सकता था।’

अगर एक सरकारी टिकटिंग पोर्टल इतने अरबों रुपये सुविधा शुल्क के नाम पर वसूलता है, तो बाकी प्राइवेट और सरकारी पोर्टल्स की वसूली का अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं।
- प्रफुल्ल सारडा, आरटीआई कार्यकर्ता
देशभर के करोड़ों रेल यात्रियों से ऑनलाइन टिकट बुकिंग के नाम पर वसूली गई 2619 करोड़ रुपये की ‘कन्वीनियंस फीस’, IRCTC की वेबसाइट के रखरखाव पर खर्च हुई, लेकिन यात्रियों को न टिकट बुकिंग में सहूलियत मिली, न पेमेंट गेटवे की गारंटी, और न ही तकनीकी भरोसा। तो फिर सवाल यह उठता है कि कन्वीनियंस किसकी हुई?
– राधेश्याम यादव, सीनियर जर्नलिस्ट
कोई भी सरकारी सेवा पोर्टल वेबसाइट के नाम पर इतनी भारी भरकम राशि खर्च नहीं करता।  यह एक ‘डिजिटल शुल्क तंत्र’ है, जिसकी मार सीधी जनता की जेब पर पड़ रही है।
– राकेश पांडे, नियमित टिकट बुककर्ता

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