प्रहरी संवाददाता, मुंबई। जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के बीच कामकाजी वर्ग के लिए स्थिति बदतर लग रही है। भारत में ‘आजीविका संकट’ गहराने की आशंका है। लोगों की बचत पर प्रतिकूल असर पड़ा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस महामारी की रोकथाम के लिए ‘लॉकडाउन’ देशव्यापी बंद जैसा ही है। सरकार का 2024-25 तक देश को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य कभी भी ‘व्यवहारिक लक्ष्य’ नहीं था।
दूसरी लहर के अनुमान से चूकी सरकार
द्रेज ने कहा कि भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च दशकों से जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का एक प्रतिशत बना हुआ है। भारत सरकार कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के अनुमान से चूक गई। भ्रामक आंकड़ों का सहारा लिया गया। संकट से इनकार करना इसे बदतर बनाने का सबसे विश्वस्त तरीका है। सरकार हमेशा से इनकार की मुद्रा में रही है, जबकि रिकार्ड में मामले लाखों में थे। हम अब इस आत्मसंतोष की कीमत चुका रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत में खासकर सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की अनदेखी का लंबा इतिहास रहा है और हम आज उसी की कीमत चुका रहे हैं।
अभिजात वर्ग की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का लक्ष्य
भारतीय अर्थशात्री ने कहा, ‘भारत को साल 2024-25 तक 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य कभी भी व्यवहारिक लक्ष्य नहीं था। इस लक्ष्य का मकसद केवल भारत के अभिजात वर्ग की महाशक्ति की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना है।’ उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024-25 तक भारत को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा था।