✍🏻 प्रहरी डिजिटल डेस्क, मुंबई | शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की पहचान और चुनाव चिन्ह को लेकर सबसे बड़ा सियासी संघर्ष अब निर्णायक मुकाम पर पहुंचने जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी, 2026 को इन विवादों की अंतिम सुनवाई तय की है, जिससे महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। यह वह तारीख होगी, जब चुनाव आयोग के आदेश और दोनों गुटों के तर्कों पर न्याय का फैसला होगा।
बता दें कि शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट ने चुनाव आयोग के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें एकनाथ शिंदे गुट को ‘धनुष-बाण’ चिन्ह व पार्टी की आधिकारिक पहचान दी गई।
इसी तरह, एनसीपी (शरद पवार) गुट ने भी आयोग द्वारा अजीत पवार गुट को ‘घड़ी’ चुनाव चिन्ह देने पर आपत्ति जताई है। खंडपीठ ने दोनों मामलों को एक साथ सुनने की व्यवस्था करते हुए स्पष्ट किया कि दोनों के कानूनी सवाल जुड़े हैं, और निर्णय इनकी राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करेगा।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकीलों ने अदालत में चुनाव आयोग के निर्णयों को संविधान और संगठनात्मक कसौटी के आधार पर चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में उद्धव गुट को ‘शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)’ नाम और ‘जलती मशाल’ चिन्ह का उपयोग जारी रखने की अनुमति दी है, जबकि शरद पवार गुट ‘शंख बजाते व्यक्ति’ प्रतीक इस्तेमाल कर सकता है।
अजीत पवार गुट को कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि उनका चुनाव चिन्ह विवादित है और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब सभी की नजरें 21 जनवरी की सुनवाई पर हैं, जहां महाराष्ट्र की सियासत का सबसे अहम फैसला तय हो सकता है।
सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी और देवदत्त कामत ने उद्धव ठाकरे गुट की ओर से पक्ष रखा, जबकि सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और एन. के. कौल ने शिंदे गुट का प्रतिनिधित्व किया।
