आज का यह व्यंग्य मौजूदा हालात पर कटाक्ष करता है और दिखाता है कि कैसे हम इतिहास से सीखने के बजाय उसे राजनीतिक हथियार बना रहे हैं। पढ़ें और बताएं कि आपको यह कैसा लगा?
इतिहास गवाह है कि जब-जब विपत्ति आई, तब-तब समझदारी ने उसे पराजित किया। पर आज के हालात देखकर लगता है कि हम इतिहास से कुछ भी सीखने के मूड में नहीं हैं।
मेवाड़ की रानी कर्णावती ने जब बहादुर शाह के हमले से बचाव के लिए हुमायूं को राखी भेजी थी, तब हुमायूं ने अपना पारिवारिक वैमनस्य भुलाकर भाई होने का धर्म निभाने का प्रयास किया। भले ही वह समय पर न पहुंच सका, पर राखी की लाज बचाने के लिए निकला जरूर।
लेकिन ज़रा सोचिए, अगर यह घटना आज के दौर में होती?
रानी कर्णावती जैसे ही हुमायूं को राखी भेजती, सोशल मीडिया पर ट्रेंड बनने लगते—
#रानी_देशद्रोही, #हुमायूं_का_दलाल और #राखी_एक_षड्यंत्र!
टीवी चैनलों की बहस में एंकर चीख-चीखकर बताते कि यह एक ‘टूलकिट’ का हिस्सा है, और इसका मकसद देश की संस्कृति को नष्ट करना है।
एक दल के नेता कहते, “रानी को विदेशी शक्तियों पर भरोसा नहीं करना चाहिए था!” वहीं दूसरे दल के प्रवक्ता हुमायूं के समर्थन में ट्वीट करते, “हमारी सरकार इतिहास की इस भूल को सुधारकर, हर बहन को न्याय दिलाएगी!”
इधर, न्यूज़ चैनलों के डिबेट्स में “राखी की राजनीति” नामक प्राइम टाइम शो चलता। एक विश्लेषक चीखते, “यह राखी नहीं, हमारी संप्रभुता पर हमला है!” दूसरे विश्लेषक जवाब देते, “हमने पहले भी सहिष्णुता दिखाई है, और आगे भी दिखाएंगे।”
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में मैसेज वायरल होता— “हुमायूं को राखी भेजने का प्लान पहले से तैयार था! यह हमारे गौरवशाली अतीत के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय साजिश है!” दूसरी ओर, इतिहास प्रेमियों का ग्रुप इस पर बहस करता कि कर्णावती का कदम उचित था या नहीं।
पर सबसे मजेदार मोड़ तब आता, जब नेताओं को समझ में आता कि राखी एक बड़ा ‘वोट बैंक’ बन सकती है। तुरंत ही एक नया नारा गढ़ा जाता— “हर घर राखी, हर घर भाई!” और सरकारी योजनाओं में एक नया विभाग जुड़ जाता— “राष्ट्रीय रक्षा सूत्र आयोग!”
और इस तरह, राखी जो एक रक्षा व प्रेम का प्रतीक थी, राजनीति की भेंट चढ़ जाती। ठीक वैसे ही, जैसे आज हम अपने नफरती भाषणों में वास्तविक समस्याओं को भुला रहे हैं। इतिहास हमें सिखाने आया था कि कटुता से कुछ नहीं मिलता, पर हमने उससे भी एक ‘वोट बैंक’ बना लिया!
कभी सोचा है, जब रानी कर्णावती और हुमायूं 7 साल में पुरानी दुश्मनी भुला सकते हैं, तो हम 500 साल बाद भी वही पुरानी दुश्मनी ढोकर क्यों चल रहे हैं?
पर सोचने के लिए दिमाग चाहिए… और वो आजकल छुट्टी पर है।