स्पेशल कोर्ट ने तीन आरोपियों को किया बरी, हाईकोर्ट की निगरानी में CBI ने की थी जांच
हाइलाइट्स
- दाभोलकर मर्डर केस में पुणे की विशेष कोर्ट ने सुनाया फैसला
- विशेष अदालत ने दो आरोपियों को सुनवाई उम्रकैद की सजा
- हाई कोर्ट की निगरानी में सीबीआई ने की थी मामले की जांच
डिजिटल न्यूज डेस्क, पुणे। सामाजिक कार्यकर्ता और अंधश्रद्धा निर्मूलन कार्यक्रम चलानेवाले डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले में पुणे की एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को फैसला सुनाया है। विशेष अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए.ए. जाधव ने दो आरोपियों सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को उम्रकैद की सजा सुनाई है। आरोपियों पर पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। कोर्ट ने इस केस के तीन आरोपियों को रिहा कर दिया है। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 20 गवाहों और बचाव पक्ष ने दो गवाहों से सवाल-जवाब किए।
अंधविश्वास के खिलाफ दाभोलकर का अभियान
बता दें कि डॉ. दाभोलकर की हत्या के 11 साल बाद पुणे कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। 20 अगस्त 2013 को डॉ. दाभोलकर की हत्या उस समय की गई थी, जब वह ओंकारेश्वर ब्रिज पर सुबह की सैर पर निकले थे। इस मामले में पांच लोगों को आरोपी बनाया गया था। डॉ. दाभोलकर की हत्या के पीछे की मुख्य वजह महाराष्ट्र अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति और सनातन संस्था के बीच के टकराव को माना जाता है।
सीबीआई को मिला था केस
बता दें कि शुरुआत में इस मामले की जांच पुणे पुलिस कर रही थी, लेकिन बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के बाद 2014 में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने मामले को अपने हाथ में ले लिया और जून 2016 में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था से जुड़े डॉ. वीरेंद्र सिंह तावडे को गिरफ्तार किया गया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, तावडे हत्या के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था। उसने दावा किया कि दाभोलकर की संस्था महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा किए गए कार्यों का सनातन संस्था विरोध करती थी। तावड़े और कुछ अन्य आरोपी सनातन संस्था से जुड़े हुए थे।
सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में शुरुआत में भगोड़े सारंग अकोलकर और विनय पवार को शूटर बताया था, लेकिन बाद में सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को गिरफ्तार किया गया और एक पूरक आरोपपत्र में जांच एजेंसी ने दावा किया कि इन दोनों ने ही दाभोलकर को गोली मारी थी। इसके बाद सीबीआई ने साजिशकर्ता के तौर पर अधिवक्ता संजीव पुणालेकर और विक्रम भावे को भी अरेस्ट किया था। इन पर भादंवि की धारा 302, 120 बी (साजिश) और यूएपीए की धारा 16 के तहत केस दर्ज किया गया।
बता दें कि महाराष्ट्र में डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के बाद अगले चार साल में तीन और सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्या हुई, जिनमें कोल्हापुर के सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद पानसरे, कन्नड़ लेखक एम. एम. कलबुर्गी और बेंगलुरू की जर्नलिस्ट गौरी लंकेश भी शामिल हैं। सीबीआई ने इन चारों हत्याकांड के तार आरोपियों से जुड़े होने की आशंका जताई थी।