आईएनएस विक्रांत के बाद विक्रांत को सहेजने में सरकार असमर्थ
मुंबई। भारतीय नौसेना का विमानवाहक पोत ‘विराट’ शनिवार को नौसेना डॉकयार्ड से अपनी अंतिम यात्रा पर निकल पड़ा। इसकी आखिरी यात्रा गुजरात के भावनगर जिले के अलंग तक होगी। इस ऐतिहासिक पोत को शुक्रवार को अलंग के लिए रवाना होना था, लेकिन इसकी रवानगी में एक दिन की देरी हुई है। भारतीय नौसेना में तीस साल की सेवा के बाद आधिकारिक तौर पर 6 मार्च 2017 को लहरों के सिकंदर आईएनएस विराट रिटायर किया गया। शिप ब्रेकिंग कंपनी जल्द ही विराट का अस्तित्व कबाड़ में बदल देगी।
ग्रैंड ओल्ड लेडी की कथा
बता दें कि आईएनएस विराट को नौसेना में ‘ग्रैंड ओल्ड लेडी’ भी कहा जाता था. यह नौसेना की शक्ति का प्रतीक था जो कहीं भी जाकर समुद्र पर धाक जमा सकता था। यह भारतीय बेड़े में एकमात्र युद्धपोत था जिसने ब्रिटेन की शाही नौसेना रॉयल नेवी और बाद में भारतीय नौसेना में सेवा दी थी। रॉयल नेवी में इसे एचएमएस हरमीज़ के नाम से जाना जाता था। ब्रिटेन की रॉयल नेवी के साथ विराट ने फॉकलैंड युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
अलंग में होगा शिप ब्रेक
हालांकि रिटायरमेंट के बाद आईएनएस ‘विराट’ को संग्रहालय या रेस्तरां में बदलने की कोशिशें हुईं, लेकिन यह योजना विफल हो गई। अलंग स्थित श्री राम समूह ने जहाज के विघटन के लिए इस ऐतिहासिक पोत को नीलामी में खरीद लिया था। नौसेना के एक अधिकारी ने कहा कि कंपनी की अपनी उच्च क्षमता वाले टग हैं जो पोत को अलंग तक ले जाएंगे और वहां तक ले जाने में दो दिन लगेंगे। समुद्र तटीय शहर अलंग में दुनिया का सबसे बड़ा जहाज विघटन यार्ड यानी शिप ब्रोकिंग यार्ड है।
गिनीज बुक रिकॉर्ड में दर्ज
आईएनएस विराट का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। आईएनएस विराट भारतीय नौसेना में शामिल होने के बाद जुलाई 1989 में ऑपरेशन जूपिटर में पहली बार श्रीलंका में शांति स्थापना के लिए ऑपरेशन में हिस्सा लिया। इसके अलावा, वर्ष 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद ऑपरेशन पराक्रम में भी विराट की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
आईएनएस विक्रांत की कहानी
आईएनएस विराट से पहले भारत के पहले विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत को तोड़ने के काम का ठेका 60 करोड़ रुपए में शिप ब्रेकिंग कंपनी आईबी कमर्शियल्स को दिया गया था। हालांकि विक्रांत को पुर्जा पुर्जा करने के प्रस्ताव के खिलाफ़ दाखिल जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने नामंज़ूर कर दिया था, जिसके तीन महीने बाद देश के इस ऐतिहासिक नौसैनिक जहाज़ को तोड़ने का काम शुरू हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पोत को सामुद्रिक संग्रहालय में बदलने की याचिका भी ठुकरा दी थी। सरकार ने तब कहा था कि जहाज़ को संग्रहालय के तौर पर संरक्षित करना आर्थिक रूप से सही नहीं होगा।