बॉम्बे हाई कोर्ट और महाराष्ट्र सरकार के पास करना होगा आवेदन
डिजिटल न्यूज डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो गैंगरेप केस में 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई के फैसले को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में गुजरात सरकार के फैसले को पलट दिया। गुजरात सरकार ने 2022 में इन दोषियों की सज़ा में छूट देते हुए रिहा कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार के पास सज़ा में छूट देने और कोई फ़ैसला लेने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को ज़्यादा उपयुक्त कहा। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि मई 2022 में गुजरात सरकार ने दोषियों की सज़ा में छूट देकर तथ्यों की उपेक्षा की थी। सभी दोषियों को दो हफ़्ते के भीतर जेल प्रशासन के पास हाज़िर होने के लिए कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों को अब महाराष्ट्र सरकार के पास रिहाई के लिए आवेदन करना होगा। यदि महाराष्ट्र में ऐसा नियम होगा कि 14 साल की सजा के बाद दोषियों को रिहा किया जा सकता है तो राज्य सरकार इस संबंध में फैसला ले सकती है। यदि ऐसा कोई समय पूर्व रिहाई का कानून नहीं होता है तो इस आवेदन का मतलब नहीं बनता है।
गुजरात में 2002 में हुए दंगों में बिलकिस बानो से गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 12 अक्तूबर को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
गुजरात सरकार की माफ़ी नीति के तहत 15 अगस्त 2022 को जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़वाडिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को गोधरा उप कारागर से रिहा कर दिया गया था।
मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने बिलकिस बानो के साथ गैंग रेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में साल 2008 में 11 दोषियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस सज़ा पर मुहर लगाई थी। इस मामले के सभी दोषी 15 साल से अधिक की सज़ा काट चुके थे। इस आधार पर इनमें से एक राधेश्याम शाह ने सज़ा में रियायत की गुहार लगाई थी।