-इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला
-बेटियों ने पिता और सौतेली मां के खिलाफ कोर्ट में दी याचिका
डिजिटल न्यूज डेस्क, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अविवाहित बेटी को गुजारा भत्ता देने के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है। अपने महत्वपूर्ण आदेश में कोर्ट ने कहा कि पीड़िता चाहे किसी भी धर्म या उम्र की हो, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत उसे गुजारा भत्ता देने के लिए यह देखना आवश्यक है कि वह अधिनियम की धारा 2(ए) के अंतर्गत पीड़ित व्यक्ति की परिभाषा के तहत आती है या नहीं। कोर्ट ने माना कि यह अधिनियम उन लोगों को त्वरित और प्रभावी न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से लाया गया है, जो घरेलू संबंधों में किसी भी प्रकार के शारीरिक, मानसिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक या आर्थिक शोषण का शिकार हुए हैं, उन्हें उक्त अधिनियम की धारा 20 (1) (डी) के तहत भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है।
“महिलाओं के लिए अधिक प्रभावी सुरक्षा”
कोर्ट ने आगे कहा कि उक्त अधिनियम को लाने के उद्देश्य को समझने के लिए अधिनियम की प्रस्तावना में “महिलाओं के लिए अधिक प्रभावी सुरक्षा” शब्दों का प्रयोग किया गया है। यह शब्द स्वयं सिद्ध करते हैं कि जो पीड़िता घरेलू संबंधों में होने के कारण घरेलू हिंसा की शिकार हुई है, वह त्वरित कार्रवाई के लिए इस अधिनियम का सहारा ले सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की एकल पीठ ने नईमुल्ला शेख और अन्य की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया।
पिता और सौतेली मां के खिलाफ बेटियां पहुंची अदालत
मामले के अनुसार, याची की बेटियों ने घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत अंतरिम भरण-पोषण देने के लिए जिला अदालत में आवेदन दाखिल किया था। बेटियों ने कोर्ट को बताया कि फरवरी 2015 में उनकी मां की मौत के बाद उनके पिता और सौतेली मां ने उनके साथ मारपीट की और उनकी पढ़ाई रोक दी। देवरिया में मजिस्ट्रेट के समक्ष याची ने तर्क दिया था कि उसकी बेटियां स्वस्थ हैं और उनके पास आर्य का स्वतंत्र स्रोत है, जबकि वह आर्थिक रूप से कमजोर है, तब भी वह बेटियों का सारा खर्च उठा रहा है।
न्यायिक मजिस्ट्रेट (देवरिया) ने 3000 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण प्रदान करने का आदेश पारित किया था, जिसके खिलाफ याची ने अपीलीय न्यायालय में इस आधार पर अपील दाखिल की कि उसकी बेटियों ने उचित शिक्षा प्राप्त की है और ट्यूशन कक्षाएं चलाकर जीविकोपार्जन कर रही हैं। इसलिए उसकी बेटियां भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकतीं।
राहत के लिए दावे को उचित माना
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने अधिनियम की धारा 12 की सहपठित धारा 20 के तहत मौद्रिक राहत के लिए बेटियों के दावे को उचित माना और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि यह अधिनियम पीड़िता को किसी भी कानून यानी आपराधिक, सिविल और पर्सनल लॉ के तहत भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार प्रदान करता है।