पब्लिक पर डाला बोझ, केंद्र एक्साइज ड्यूटी से हर साल बटोरेगा 32,000 करोड़
✍🏻 प्रहरी संवाददाता, नई दिल्ली। जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड सस्ता हो और घरेलू अर्थव्यवस्था दबाव में हो, तो जनता को राहत मिलने की उम्मीद स्वाभाविक होती है। लेकिन सरकार के नजरिए में प्राथमिकता राजस्व जुटाना है—चाहे वह महामारी हो या मंदी। इस बार भी कहानी कुछ अलग नहीं है: जनता के हिस्से फिर सिर्फ इंतजार आया, राहत नहीं।
सोमवार का दिन आम जनता के लिए दोहरे झटके वाला रहा। एक ओर शेयर बाजार में भारी गिरावट से निवेशकों को नुकसान झेलना पड़ा, दूसरी ओर सरकार ने एक साथ कई कीमतों में बढ़ोतरी कर दी। पेट्रोल और डीजल पर दो रुपये प्रति लीटर की अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी, रसोई गैस सिलेंडर पर 50 रुपए की बढ़ोतरी, और सीएनजी की कीमत में 1 रुपए प्रति किलोग्राम का इजाफा— इन फैसलों ने आर्थिक दबाव झेल रहे उपभोक्ताओं की चिंता और बढ़ा दी।
यह सब उस समय हुआ जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें चार साल के निचले स्तर पर हैं। ब्रेंट क्रूड 63.21 डॉलर/बैरल और WTI 59.79 डॉलर/बैरेल पर पहुंच चुका है। पिछले दो हफ्तों में क्रूड कीमतों में कुल 15% तक की गिरावट दर्ज की गई है। ऐसे में राहत की उम्मीद कर रही जनता के लिए सरकार की यह कीमत वृद्धि अप्रत्याशित रही।
टैक्स तो बढ़ा, कीमतें नहीं –क्या वाकई में ऐसा है ?
सरकार ने साफ किया है कि पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। दरअसल, यह बढ़ोतरी स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी (SAED) में की गई है, जिससे सीधे तौर पर उत्पाद शुल्क के जरिए सरकार को राजस्व मिलेगा। पेट्रोल पर SAED 11 से बढ़कर 13 रुपये, और डीजल पर 8 से बढ़कर 10 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया है।
भारत में सालाना करीब 16,000 करोड़ लीटर पेट्रोल और डीजल की खपत होती है। ऐसे में 2 रुपये प्रति लीटर की अतिरिक्त ड्यूटी से सरकार को हर साल लगभग 32,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है।
‘उज्ज्वला’ पर भी असर, आम आदमी की चिंता
रसोई गैस सिलेंडर पर 50 रुपये की बढ़ोतरी से न सिर्फ घरेलू बजट पर असर पड़ेगा, बल्कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों पर भी बोझ बढ़ेगा। यह तब है जब सब्सिडी धीरे-धीरे खत्म कर दी गई है और अधिकांश उपभोक्ता बाजार दरों पर ही एलपीजी खरीदते हैं।
सरकार की सफाई: कंपनियों का घाटा भरना मकसद
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि टैक्स बढ़ाने का उद्देश्य उपभोक्ताओं पर बोझ डालना नहीं, बल्कि तेल विपणन कंपनियों (OMCs) को हुए ₹43,000 करोड़ के नुकसान की भरपाई करना है। उनके मुताबिक, कोविड काल में सब्सिडी वाली गैस और अंतरराष्ट्रीय कीमतों के असंतुलन ने OMCs को भारी घाटे में डाल दिया था, जिसे अब उत्पाद शुल्क से कवर किया जा रहा है।
इतिहास खुद को दोहरा रहा है
यह पहली बार नहीं है जब केंद्र सरकार ने कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में गिरावट का लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचाया हो। नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच मोदी सरकार ने 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई, जिससे पेट्रोल पर 11.77 रुपए और डीजल पर 13.47 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई थी। इससे सरकार का एक्साइज कलेक्शन 2014-15 में 99,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 2016-17 में 2.42 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया।
कोविड काल में भी टैक्स की झड़ी
मार्च 2020 से मई 2020 के बीच केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर 13 रुपए और डीजल पर 16 रुपए प्रति लीटर तक एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई थी। उस दौरान वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें 30 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ चुकी थीं। लेकिन सरकार ने राहत देने के बजाय टैक्स वसूली को तरजीह दी।इससे वित्त वर्ष 2020-21 में सरकार को कुल 3.36 लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिला। अकेले डीजल से 2.33 लाख करोड़ रुपए की कमाई हुई।
2014 से 2025 तक एक्साइज ड्यूटी वसूली का ग्राफ
- 2014–15: 99,000 करोड़ रुपए
- 2015–16: 1,79,000 करोड़ रुपए
- 2016–17: 2,42,000 करोड़ रुपए
- 2020–21: 3,36,000 करोड़ रुपए
- 2023–24 (अनुमानित): 3,20,000 करोड़ रुपए
- 2024–25 (प्रोजेक्टेड): 3,52,000 करोड़ रुपए