प्रहरी संवादताता, मुंबई। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने चुनौतीपूर्ण समय में मौलिक अधिकारों की रक्षा में शीर्ष न्यायालय की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि आतंकवाद निरोधी कानून समेत अपराध कानूनों का दुरुपयोग असहमति को दबाने या नागरिकों के उत्पीड़न के लिए नहीं होना चाहिए।
अमेरिकन बार एसोसिएशन, सोसाइटी ऑफ इंडियन लॉ फर्म्स और चार्टर्ड इंस्टीट्यूट ऑफ आर्बिट्रेटर्स की ओर से आयोजित सम्मेलन में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह बात कही। उन्होंने कहा, ‘संविधान का संरक्षक होने के नाते, शीर्ष न्यायालय को वहां रोक लगानी होती है, जहां पर कार्यपालिका और विधायका के कामकाज बुनियादी मानवाधिकारों में हस्तक्षेप करते हैं।’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत का उच्चतम न्यायालय ‘बहुसंख्यकवाद निरोधी संस्था’ की भूमिका निभाता है और ‘सामाजिक, आर्थिक रूप से अल्पसंख्यक लोगों के अधिकारों की रक्षा करना’ शीर्ष अदालत का कर्तव्य है। उन्होंने आगे कहा, ‘इस काम के लिए उच्चतम न्यायालय को एक सतर्क प्रहरी की भूमिका भी निभानी होती है और संवैधानिक अंत:करण की आवाज को सुनना होता है, यही भूमिका न्यायालय को 21वीं सदी की चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए प्रेरित करती है, जिसमें वैश्विक महामारी से लेकर बढ़ती असहिष्णुता जैसी चुनौती शामिल हैं, जो दुनियाभर में देखने को मिल रही हैं।’
न्यायमूर्ति ने कहा कि कुछ लोग इस हस्तक्षेप को ‘न्यायिक एक्टिविज्म’ या ‘न्यायिक सीमा पार करने’ की संज्ञा देते हैं। वरिष्ठ पत्रकार अर्नब गोस्वामी के मामले में दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा,‘आतंकवाद निरोधी कानून समेत अपराध कानून का इस्तेमाल असहमति को दबाने या नागरिकों का उत्पीड़न करने के लिए नहीं होना चाहिए।’