सुप्रीम कोर्ट ने कहा: मनी लॉन्ड्रिंग कानून का इस्तेमाल लोगों को जेल भेजने के लिए हथियार की तरह नहीं किया जा सकता
मुंबई। सर्वोच्च न्यायालय ने एक सुनवाई में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर जो टिप्पणी की है, वह इस केंद्रीय एजेंसी की अंधाधुंध कार्रवाइयों पर स्पीड ब्रेकर का कार्य कर सकता है। न्यायालय ने कहा है कि मनी लॉन्ड्रिंग कानून का इस्तेमाल लोगों को जेल भेजने के लिए हथियार की तरह नहीं किया जा सकता। कानून का धड़ल्ले से उपयोग कानून की उपयोगिता को प्रभावित करता है। अदालत की यह टिप्पणीके बाद अब नेताओं को राहत मिलने की संभावना बढ़ गई है।
फैसले को चुनौती
सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि कानून का उपयोग लोगों को कारागृह में डालने के लिए नहीं होना चाहिए। यह टिप्पणी झारखंड की एक निजी क्षेत्र की कंपनी द्वारा प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को चुनौती देनेवाली याचिका पर आई है।
जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली परटीका
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एन.वी रमण्णा, न्यायाधीश ए.एस बोपन्ना और हिमा कोहली ने अपने निरीक्षण में कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय कानून को शिथिल कर रहा है, वह भी मात्र इसी प्रकरण में ही नहीं, बल्कि इस कानून का उपयोग एक हजार रुपये या सौ रुपये के धनशोधन प्रकरणों में भी किया जाएगा तो क्या होगा? आप सभी को सलाखों के पीछे नहीं डाल सकते। कानून का ऐसा अंधाधुंध उपयोग उसके महत्व को कम करता है।
क्या है प्रकरण?
झारखंड की स्टील क्षेत्र में काम करनेवाली कंपनी उषा मार्टिन लिमिटेड ने उच्च न्यायालय के एक निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। यह प्रकरण इस्पात अयस्कों के निर्यात पर लगाए गए आर्थिक दंड से संबंधित है। इसमें प्रवर्तन निदेशालय ने धनशोधन कानूनों के अंतर्गत आपराधिक कार्रवाई शुरू करने के लिए कंपनी को समन जारी किया था।