मुंबई। महाराष्ट्र के मंत्री और कॉंग्रेस नेता अशोक चव्हाण ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रम प्रवेश में मराठा आरक्षण को स्थगित करने के लिए दायर याचिका की सुनवाई करते हुए अंतरिम रोक लगाने का आदेश देने से इनकार कर दिया है। इस फैसले से वह बहुत संतुष्ट हैं। शीर्ष न्यायालय ने बुधवार को यह भी कहा कि वह महाराष्ट्र में मराठा को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण देने के लिए बने कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर 27 जुलाई से वीडियो कांफ्रेंस के जरिये रोजाना सुनवाई करेगा।
मराठा आरक्षण पर महाराष्ट्र कैबिनेट की उपसमिति के अध्यक्ष चव्हाण ने एक बयान में कहा कि राज्य सरकार रोजाना होने वाली सुनवाई के दौरान पूरी मजबूती से अपना पक्ष न्यायालय के समक्ष रखेगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता रफीक दादा मध्यस्थ के पक्ष में दलील पेश कर रहे हैं, जो आरक्षण के समर्थन में है। वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और परमजीत सिंह पटवालिया अदालत में राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। चव्हाण ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रम में प्रवेश में मराठा आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश देने से इनकार कर दिया, यह बहुत ही संतुष्टु करने वाला है।’’
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय में बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें मराठा समुदाय को शिक्षा (12 प्रतिशत) और सरकारी नौकरी (13 प्रतिशत) में आरक्षण देने के फैसले को कायम रखा था। सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग अधिनियम-2018 ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण देने के लिए अधिकृत किया है। बंबई उच्च न्यायालय ने पिछले साल जून में कानून को बरकरार रखते हुए कहा कि मराठा समुदाय के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं है और समुदाय को शिक्षा और नौकरी में क्रमश: 12 और 13 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं होना चाहिए।
शीर्ष न्यायालय ने पांच फरवरी को मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण देने वाले कानून को कायम रखने के उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया था। उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल जुलाई में महाराष्ट्र के कानून की संवैधानिक वैधता को परखने का फैसला किया था लेकिन कुछ बदलाव के साथ कानून को बरकरार रखने के उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।