नायक समिति की रपट से खुलासा, अधिकारियों ने ही लगाया सरकारी बैंकों की साख को बट्टा
कॉरपोरेट बिचौलियों के साथ मिल कर ‘खेल’
नई दिल्ली। भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों का जो बंटाधार हुआ है, उसके पीछे सरकारी कर्मियों का ही हाथ रहा है। सरकारी अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर कॉर्पोरेट जगत के बिचौलियों की टोली बैंकों के ऋण प्रस्ताव को लेकर सक्रिय भूमिका अपनाती रही है, जिसके कारण बैंकों का कामकाज भी प्रभावित हुआ। भारत में बैंकों के अभिशासन यानी कामकाजी व्यवस्था की समीक्षा करने के लिए गठित की गई पी.जे. नायक समिति ने अपनी रिपोर्ट में इन बातों का उल्लेख किया है।
अधिकारियों के मौखिक निर्देश
नायक समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सरकार के कई अंग अनौपचारिक मौखिक निर्देश जारी करते हैं। वे ऐसे ही लहजे में सलाह भी दे देते हैं। खास बात ये है कि उनके ये निर्देश या सलाह कभी भी आधिकारिक रिकॉर्ड पर नहीं आ पाते। यह नियंत्रण का एक ऐसा तरीका होता है, जो बैंक की कार्यप्रणाली का गंभीर तौर से राजनीतिकरण करता है। इन तरीकों का इस्तेमाल ऋण मंजूरी के दौरान विशेष रूप से किया जाता है। इसके पीछे जो लॉबी काम करती है, उसमें कॉर्पोरेट जगत के लोग और कुछ उधारकर्ता शामिल होते हैं। यही टोली बैंकों के ऋण प्रस्ताव की फेरी लगाने वाले बिचौलियों के अनौपचारिक व्यवसाय को जन्म देती है।
बिचौलिए हावी, सरकार की नजर है
वित्त मंत्रालय के अनुसार, बिचौलियों का यह अनौपचारिक व्यवसाय बैंकिंग उद्योग को बुरी तरह संकटग्रस्त कर देता है। ये बातें सरकार के ध्यान में हैं। मई 2014 में जब पी.जे. नायक समिति ने अपनी रिपोर्ट दी थी तो उसके बाद कई नए कदम उठाए गए थे। जनवरी 2015 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के साथ एक कार्यक्रम के दौरान सरकार ने स्पष्ट शब्दों में यह संदेश दिया था कि वाणिज्यिक निर्णयों सहित पीएसबी के कार्यों में कोई भी हस्तक्षेप नहीं होगा।
वित्त मंत्रालय की सलाह
वित्त मंत्रालय ने अपने कार्यालय ज्ञापन के माध्यम से भारत सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों को यह सलाह दी थी कि बैंकों को अपने समस्त वाणिज्यिक निर्णय अपने संगठन के सर्वोत्तम हित में लेने चाहिए। साथ ही यह भी कहा गया था कि ऐसे सभी निर्णय मामले के तथ्यों और वस्तुनिष्ठता के आधार पर लिए जाएं।