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कफील खान का भाषण हिंसा भड़काने वाला नहीं, एकता का संदेश: हाई कोर्ट

प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि डॉ कफ़ील पर एनएसए लगाना गैर-कानूनी है, लिहाजा डॉक्टर कफील को तुरंत रिहा किया जाए। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि कफील खान का भाषण सरकार की नीतियों का विरोध था। उनका बयान नफरत या हिंसा को बढ़ावा देने वाला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संदेश देने वाला था। इस निष्कर्ष पर पहुंचते हुए कोर्ट ने कहा कि कफील खान को तुरंत रिहा किया जाए। सात महीने बाद डॉक्टर कफील खान को जमानत मिल गई है और उनके बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है।
बता दें कि डॉक्टर कफील खान को अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में जेल में डाल दिया गया। जेल से छूटने के दिन ही उन पर एनएसए जैसा दूसरा संगीन इल्जाम लगा कर सीखचों से बाहर नहीं आने दिया गया। फिलहाल, कफील खान को कोर्ट के आदेश के बाद राहत मिल गई है। डॉक्टर कफील का नाम सबसे पहले 2017 में चर्चा में आया था और तब से ही वह मुश्किलों में हैं।

बीआरडी अस्पताल की घटना से नाम सामने आया
एमडी की डिग्री लेने के बाद डॉक्टर कफील खान की नियुक्ति अगस्त 2016 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई थी। मेडिकल कॉलेज के हास्पिटल में 10-11 अगस्त 2017 की रात अचानक ऑक्सीजन सप्लाई की कमी से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हो गई। हादसे के बाद बीआरडी के कई डॉक्टरों के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज किया गया, जिसमें डॉक्टर कफील खान का नाम भी था। कफील खान को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। हालांकि अप्रैल 2018 में कफील खान को बेल मिल गई।

सीएए के विरोध में भड़काऊ भाषण का आरोप

दिसंबर 2019 में केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून पारित किया। इस कानून का देश के कई इलाकों में विरोध किया गया। कानून को धर्म के आधार पर पक्षपात करने वाला बताया गया। मुस्लिम समुदाय के लोग इस कानून के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी से लेकर शाहीनबाग और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी तक छात्र-छात्राएं, महिलाएं सड़कों पर उतर आए और कानून वापसी की मांग करने लगे।

पिछले साल 12 दिसंबर को एक तरफ राष्ट्रपति ने सीएए को मंजूरी दी और दूसरी तरफ इसी दिन एएमयू में प्रदर्शन कर रहे छात्रों को योगेंद्र यादव और डॉक्टर कफील खान ने संबोधित किया। इसके अगले ही दिन डॉ कफील खान के खिलाफ अलीगढ़ के सिविल लाइंस पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 153-ए के तहत केस दर्ज कर लिया गया। इसके बाद कुछ और धाराएं भी जोड़ दी गईं। उनके खिलाफ भाषण से नफरत फैलाने, बांटने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने जैसे आरोप लगे।
बता दें कि 29 जनवरी 2020 को डॉक्टर कफील खान की गिरफ्तारी मुंबई से हुई। यूपी लाकर कफील खान को मथुरा की जेल में रखा गया। 10 फरवरी को अलीगढ़ के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने कफील खान को 60 हजार की जमानत राशि के साथ बेल दे दी। बेल ऑर्डर के हिसाब से कफील खान को 13 फरवरी की सुबह 11 बजे मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना था, लेकिन न ही कफील खान को रिहा किया गया और न ही मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1 सितंबर को दिए गए अपने आदेश में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा, एडिशनल एडवोकेट जनरल की तरफ से बताया गया है कि कफील खान जेल में रहते हुए भी एएमयू के छात्रों के संपर्क में हैं और अलीगढ़ का मौहाल खराब करने की कोशिश की जा रही है। कोर्ट ने कहा कि ये आरोप किसी तरह से साबित नहीं किया गया है, इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। आदेश में कहा गया कि जेल में कोई डिवाइस नहीं रहती है जिससे किसी से संपर्क किया जाए और जेल में किसी मिलने वाले के जरिए संदेश पहुंचाने की बात भी रिकॉर्ड में नहीं है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा, ”पूरा भाषण पढ़ने से पृथम दृष्टया कहीं जाहिर नहीं होता कि नफरत या हिंसा को बढ़ाने का प्रयास किया गया है। साथ ही इससे अलीगढ़ शहर की शांति को भी कोई चुनौती नहीं दिखाई देती है। भाषण राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देने वाला है। ऐसा लगता है कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने भाषण का कुछ हिस्सा पढ़ा और भाषण के असल मकसद को दरकिनार कर कुछ हिस्से वहां से ले लिए।

कोर्ट ने आदेश में कहा, ”13 फरवरी, 2020 को अलीगढ़ डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया आदेश, जो कि यूपी सरकार द्वारा भी कंफर्म किया गया था, रद्द किया जाता है। डॉक्टर कफील को जेल में रखना गैर-कानूनी करार दिया जाता है। उन्हें तुरंत रिहा किया जाए।”

 

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