वक्फ संशोधन विधेयक 2024 को 288-232 के मत से पारित
✍🏻 प्रहरी संवाददाता, नई दिल्ली। लोकसभा में लंबी बहस और तीखी नोकझोंक के बाद वक्फ संशोधन विधेयक 2024 बुधवार देर रात बहुमत से पारित हो गया। लोकसभा ने वक्फ संशोधन विधेयक 2024 को 288-232 के मत से पारित कर दिया। अब यह बिल राज्यसभा में जाएगा, लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इसे खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का संकेत दिया है। बोर्ड इसे मुस्लिम अधिकारों पर हमला मान रहा है।
विधेयक पारित, विवाद गहराया
लोकसभा में बुधवार देर रात चली बहस के बाद विधेयक बहुमत से पास हुआ। इसमें वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, संपत्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड और केंद्रीय नियंत्रण बढ़ाने जैसे प्रावधान हैं। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इसे पारदर्शिता का कदम बताया, जबकि विपक्ष ने अल्पसंख्यक विरोधी करार दिया।
AIMPLB का कड़ा रुख
AIMPLB ने विधेयक को वक्फ की स्वायत्तता पर हमला बताया। प्रवक्ता डॉ. कासिम रसूल इलियास ने कहा, “यह असंवैधानिक है। हम सुप्रीम कोर्ट में इसकी वैधता को परखेंगे।” बोर्ड कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ले रहा है, हालांकि अभी याचिका दायर नहीं हुई। रमजान के आखिरी जुमे पर लाखों लोगों ने इसका विरोध किया था।
संसद से कोर्ट तक की राह
कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने कहा, “यह मामला कोर्ट तक जाएगा।” राज्यसभा में एनडीए के पास बहुमत नहीं है, जिससे बिल का भविष्य अनिश्चित है। अगर AIMPLB कोर्ट जाता है, तो धारा 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठ सकता है।
समर्थन और विरोध के बीच बहस
समर्थकों का कहना है कि यह भ्रष्टाचार रोकेगा, जबकि आलोचक इसे समुदाय विशेष के खिलाफ मानते हैं। AIMPLB ने सेक्युलर दलों से समर्थन मांगा, लेकिन लोकसभा में यह रणनीति विफल रही। अब बोर्ड कानूनी रास्ते पर आगे बढ़ने को तैयार है।
आगे क्या?
राज्यसभा का फैसला और सुप्रीम कोर्ट में संभावित सुनवाई इस विवाद की दिशा तय करेगी। AIMPLB के अगले कदम पर सबकी नजरें टिकी हैं।
विधेयक का प्रमुख प्रावधान
विधेयक वक्फ अधिनियम का नाम बदलने का प्रस्ताव करता है।
वक्फ की घोषणा से संबंधित परिवर्तन:
- वर्तमान अधिनियम के अनुसार, वक्फ को घोषणा, दीर्घकालिक उपयोग, या बंदोबस्ती द्वारा स्थापित किया जा सकता था।
- विधेयक में प्रस्तावित है कि केवल वह व्यक्ति जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा हो, वक्फ घोषित कर सकता है।
- यह भी स्पष्ट किया गया है कि वक्फ घोषित करने वाले व्यक्ति को उस संपत्ति का मालिक होना चाहिए।
- वक्फ-बाय-यूजर (किसी संपत्ति का लंबे समय तक धार्मिक उपयोग होने के आधार पर वक्फ घोषित करना) को समाप्त कर दिया गया है।
- वक्फ-अलल-औलाद (परिवार के लाभ के लिए वक्फ) के मामले में, यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इससे महिला उत्तराधिकारियों सहित किसी भी उत्तराधिकारी का संपत्ति पर अधिकार न छीना जाए।
वक्फ बोर्ड की शक्तियों में संशोधन:
वर्तमान अधिनियम में वक्फ बोर्ड को यह जाँचने और तय करने का अधिकार था कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं। विधेयक इस प्रावधान को हटा देता है।
केंद्रीय वक्फ परिषद में संशोधन:
अधिनियम के अनुसार, केंद्रीय वक्फ परिषद केंद्र और राज्य सरकारों तथा वक्फ बोर्डों को सलाह देती थी। केंद्रीय मंत्री (वक्फ मामलों के प्रभारी) परिषद के पदेन अध्यक्ष होते थे, और सभी सदस्य मुस्लिम होते थे, जिनमें से कम से कम दो महिलाएँ होनी चाहिए थीं। विधेयक में बदलाव करते हुए प्रस्तावित किया गया है कि परिषद में दो सदस्य गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं।
संसद सदस्य, पूर्व न्यायाधीश, और प्रतिष्ठित व्यक्ति जो परिषद के सदस्य होंगे, उन्हें मुस्लिम होने की आवश्यकता नहीं होगी।
हालांकि, मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, इस्लामी कानून के विद्वान, और वक्फ बोर्डों के अध्यक्ष मुस्लिम होने चाहिए। मुस्लिम सदस्यों में से कम से कम दो महिलाएँ होंगी।
केंद्र सरकार की बढ़ी हुई शक्तियाँ:
विधेयक केंद्र सरकार को वक्फ की पंजीकरण प्रक्रिया, खातों के प्रकाशन और वक्फ बोर्ड की कार्यवाही के प्रकाशन से संबंधित नियम बनाने का अधिकार देता है। अधिनियम के तहत, राज्य सरकारें किसी भी समय वक्फ संपत्तियों के खातों का ऑडिट करा सकती थीं। विधेयक के अनुसार, अब केंद्र सरकार कैग (CAG) या किसी अधिकृत अधिकारी के माध्यम से इनका ऑडिट करा सकेगी।
अलग-अलग वक्फ बोर्डों का प्रावधान:
अधिनियम के तहत, यदि किसी राज्य में शिया वक्फ संपत्तियाँ कुल वक्फ संपत्तियों का 15% से अधिक हैं, तो अलग शिया वक्फ बोर्ड स्थापित किया जा सकता था। विधेयक के अनुसार, अब आगा खानी और बोहरा संप्रदायों के लिए भी अलग वक्फ बोर्ड बनाए जा सकते हैं।
वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों को चुनौती देने का अधिकार:
अधिनियम में वक्फ ट्रिब्यूनल के निर्णयों को अंतिम माना जाता था और इन पर अदालतों में अपील नहीं की जा सकती थी। उच्च न्यायालय केवल अपने विवेकाधिकार से या बोर्ड या किसी अन्य पक्ष की अपील पर मामले की सुनवाई कर सकता था। विधेयक इस प्रावधान को हटाकर, वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों के खिलाफ उच्च न्यायालय में 90 दिनों के भीतर अपील करने की अनुमति देता है।
