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न्याय में देरी न्याय से इनकार है… सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने अदालतों में पेंडिंग केस पर जताई चिंता

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देश की अदालतों में 5.2 करोड़ पेंडिंग केस हैं, जिनकी सुनवाई नहीं हो रही

• सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने न्यायपालिका को लेकर की बड़ी टिप्पणी
• मानवाधिकारों के उल्लंघन पर जताई गंभीर चिंता
• लोकतंत्र में असहमति के अधिकार को आत्मा बताया गया

✍🏻 प्रहरी संवाददाता, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बी. एन. श्रीकृष्ण ने भारतीय न्यायपालिका की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि “न्याय में देरी, न्याय से इनकार के समान है।” पूर्व जज का यह बयान देश की अदालतों में बढ़ते लंबित मामलों को लेकर आया है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और निचली अदालतों में कुल मिलाकर पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिससे न्याय की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।

लोकतंत्र की आत्मा है असहमति

दिल्ली में आयोजित लोकतांत्रिक अधिकार और धर्मनिरपेक्षता संरक्षण समिति (CPDRS) के राष्ट्रीय सम्मेलन में जस्टिस श्रीकृष्ण ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि असहमति और विरोध का अधिकार किसी भी लोकतंत्र की आत्मा होता है और यदि इस अधिकार का हनन होता है, तो लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर हो जाती है। उन्होंने कहा कि “न्यायपालिका का काम नागरिकों को उनके संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा देना है, लेकिन मौजूदा हालात में यह गंभीर चुनौती का सामना कर रही है।”

न्यायिक स्वतंत्रता को खतरा

पूर्व जज ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि देश में न्यायिक स्वतंत्रता को खतरा पैदा हो रहा है। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र में कानून का शासन सर्वोपरि होना चाहिए, लेकिन जब न्यायपालिका पर दबाव बढ़ता है या उसकी स्वतंत्रता पर सवाल उठते हैं, तो यह पूरे लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा बन जाता है।”
जस्टिस श्रीकृष्ण ने कहा कि पिछले एक दशक में न्यायिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर दबाव बढ़ा है, जो चिंताजनक है। उन्होंने नागरिक समाज से अपील की कि वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आएं।

मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता

सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के ही एक अन्य रिटायर्ड जज ए. के. पटनायक ने भी मानवाधिकारों के हनन पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि हिरासत में मौतें, फर्जी मुठभेड़ और जेलों में दी जाने वाली यातनाओं के मामलों में वृद्धि हो रही है। जस्टिस पटनायक ने कहा, “लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्थाएं ही इनका सबसे अधिक हनन कर रही हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि समाज में असमानता लगातार बढ़ रही है और संपत्ति कुछ गिने-चुने लोगों के हाथों में केंद्रित होती जा रही है, जिससे समाज में विभाजन बढ़ रहा है।

समाज को आगे आना होगा

दोनों पूर्व जजों ने इस बात पर जोर दिया कि नागरिकों को अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए सतर्क रहना होगा। जस्टिस श्रीकृष्ण ने कहा, “अगर आम लोग चुप रहेंगे, तो यह स्थिति और भी खराब हो सकती है।” उन्होंने कहा कि कानून का शासन और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए जनता को जागरूक होने की जरूरत है।
इस सम्मेलन में भाग लेने वाले कई विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस विषय पर अपने विचार रखे और न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।

गौरतलब है कि भारत की न्यायपालिका फिलहाल लंबित मामलों की बढ़ती संख्या से जूझ रही है, जो न्याय वितरण प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है। वर्ष 2025 तक, देशभर की अदालतों में 5.2 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से लगभग 1.8 लाख मामले 30 वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं। इनमें से 85% से अधिक मामले, अर्थात् लगभग 4.5 करोड़, जिला अदालतों में पेंडिंग हैं।

 


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