नेपाल का संकट सिर्फ़ घरेलू नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया के शक्ति-संतुलन को हिला देने वाला भू-राजनीतिक तूफ़ान
संपादकीय लेख:
नेपाल की गलियों में उठी लपटें किसी एक रात में नहीं फूटीं। दशकों से जमा असंतोष, युवाओं की बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और सत्ता के खेल ने मिलकर इस विस्फोट को जन्म दिया। सोशल मीडिया बैन सिर्फ़ वह चिंगारी थी जिसने दबे गुस्से को सुलगा दिया। संसद भवन जल उठा, दर्जनों जानें गईं और अंततः प्रधानमंत्री ओली को पद छोड़ना पड़ा। यह केवल एक राजनीतिक संकट नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए चेतावनी है।
नेपाल की स्थिति को केवल आंतरिक असंतोष तक सीमित मानना भूल होगी। भू-राजनीति की सच्चाई यह है कि नेपाल भारत और चीन के बीच वह ज़मीन है, जहां हर हलचल का असर पूरे क्षेत्र पर पड़ता है। चीन बुनियादी ढांचे और कर्ज़ के जरिए अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है, जबकि अमेरिका लोकतंत्र के नाम पर हस्तक्षेप करने से पीछे नहीं हटेगा। अस्थिरता दोनों महाशक्तियों के हित में है, और यही नेपाल की सबसे बड़ी त्रासदी है।
भारत के लिए यह संकट केवल पड़ोसी देश का मसला नहीं, बल्कि एक सीधी चुनौती है। खुली सीमाओं से लेकर व्यापार और सुरक्षा तक, हर पहलू पर असर पड़ने वाला है। सबसे अहम युवा असंतोष का यह विस्फोट भारत को भी आईना दिखाता है। यदि अवसर, रोजगार और पारदर्शिता नहीं मिले, तो आग कहीं भी फैल सकती है।