महाराष्ट्र और गुजरात में सबसे ज्यादा वर्क लोड
डिजिटल न्यूज डेस्क, मुंबई। कामकाजी घंटों को लेकर छिड़ी बहस के बीच सामने आई एक रिपोर्ट चौंकाने वाली तस्वीर पेश करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश की 4.55% आबादी हर सप्ताह 70 घंटे से ज्यादा काम कर रही है। बढ़े हुए काम के घंटे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं, जिससे चोट लगने और पुरानी बीमारियों के उभरने का जोखिम बढ़ जाता है।
बता दें कि इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति सप्ताह में 70 घंटे काम की सलाह देते रहे हैं, जबकि एलएंडटी के चेयरमैन ने उनसे दो कदम आगे बढ़ते हुए कहा था कि कर्मचारियों को संडे सहित वीक में 90 घंटे काम करना चाहिए।
ये राज्य हैं टॉप पर
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के हाल ही में जारी वर्किंग पेपर के अनुसार, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, पश्चिम बंगाल और केरल की पहचान ऐसे टॉप 5 राज्यों के रूप में की गई है, जहां कर्मचारियों से सप्ताह में 70 घंटे से ज्यादा काम लिया जा रहा है। आंकड़ों से पता चला है कि गुजरात में 7.2%, पंजाब में 7.1% और महाराष्ट्र में 6.6% आबादी हर हफ्ते काफी ज्यादा काम कर रही है।
यहां सबसे कम अनुपात
‘भारत में रोजगार-संबंधी गतिविधियों में बिताया गया समय’ शीर्षक वाले इस वर्किंग पेपर में बताया गया है कि झारखंड, असम और बिहार में 70 घंटे से अधिक काम करने वालों का अनुपात सबसे कम है, जो क्रमशः 2.1 प्रतिशत, 1.6 प्रतिशत और 1.1 प्रतिशत है।
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के अनुसार, उच्च जीडीपी वाले राज्यों में प्रति सप्ताह 70 घंटे से अधिक काम करना संरचनात्मक आर्थिक लाभ को दर्शाता है। गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्य, जो औद्योगिक राज्य हैं, और कर्नाटक और तेलंगाना, जो IT स्टेट हैं, में बिहार और यूपी जैसे कृषि प्रधान राज्यों की तुलना में काम के घंटे अधिक हैं।
शहर में अधिक काम
रिपोर्ट में अलग-अलग राज्यों के विभिन्न उद्योगों में कामकाजी गतिविधियों की अवधि का उल्लेख किया गया है। इसमें बताया गया है कि फिक्स्ड सैलरी वाले व्यक्ति आमतौर पर देश में अन्य लोगों की तुलना में प्रतिदिन अधिक देर तक काम करते हैं।
इसी तरह, शहर में रहने वाले अपने ग्रामीण समकक्षों की तुलना में हर दिन लगभग एक घंटा अधिक काम करते हैं। वहीं, सर्विस सेक्टर में कार्यरत सेल्फ एंप्लॉयड गुड्स प्रोडक्शन में काम करने वालों की तुलना में औसतन अधिक घंटे काम करते हैं।
हेल्थ पर बुरा असर
सप्ताह में 70 घंटे या उससे अधिक काम को भले ही इंडस्ट्री लीडर सही मानते हों, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में सप्ताह में 60 घंटे से अधिक काम करने के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को दर्शाया गया है। सर्वेक्षण में रिसर्च के हवाले से बताया गया है कि डेस्क पर लंबे समय तक काम करने से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। विशेष रूप से, जो व्यक्ति प्रतिदिन 12 या उससे अधिक घंटे डेस्क पर बिताते हैं, उनके स्वास्थ्य को काफी ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है और उन्हें स्ट्रेस का भी खतरा रहता है।
क्या कहते हैं हेल्थ एक्सपर्ट
हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि लगातार तनाव से उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और साप्ताहिक 55+ घंटे काम करने पर स्ट्रोक का जोखिम 35% बढ़ जाता है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को भी कमजोर करता है, जिससे बीमारी की संभावना बढ़ जाती है। ओवरटाइम से लगातार तनाव चुपचाप हृदय संबंधी तनाव पैदा कर सकता है, जब तक कि कोई बड़ी स्वास्थ्य घटना न हो जाए।
इसी तरह, लंबे समय तक काम करना, खास तौर पर प्रतिदिन 8-10 घंटे या प्रति सप्ताह 40-50 घंटे से ज़्यादा, अक्सर शारीरिक और मानसिक थकावट का कारण बनता है। नींद की कमी आम बात हो जाती है क्योंकि कर्मचारियों के पास आराम करने के लिए कम समय होता है। अध्ययनों से पता चलता है कि प्रतिदिन 12+ घंटे काम करने पर चोट लगने का जोखिम 37% बढ़ जाता है।
रोजाना 12 घंटे बैठने वाले एक ऑफिस कर्मचारी को क्रोनिक पीठ दर्द हो सकता है, जिसके लिए चिकित्सा हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। पीठ के निचले हिस्से में दर्द, गर्दन में खिंचाव और टाइप 2 मधुमेह के उच्च जोखिम जैसी मस्कुलोस्केलेटल समस्याएं होती हैं।