दिल्ली में उनके घर से महाराष्ट्र पुलिस ने 2014 में किया था गिरफ्तार
डिजिटल न्यूज डेस्क, मुंबई। माओवादियों से कथित तौर पर संबंध रखने के मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफे़सर जी.एन. साईबाबा को बॉम्बे हाई कोर्ट ने बरी कर दिया है। साईबाबा को इस मामले में उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी। मई 2014 में प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा को दिल्ली में उनके घर से महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें निलंबित कर दिया था।
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। पीठ ने जीएन साईबाबा समेत पांच अन्य को माओवादी लिंक के एक कथित मामले में बरी कर दिया है। साथ ही हाई कोर्ट ने उनकी उस अपील को भी स्वीकार कर लिया है, जिसमें एक अदालत की तरफ से उन्हें दोषी ठहराया गया था और उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी।
प्रोफेसर साईबाबा के साथ ही महेश तिर्की, हेम मिश्रा और प्रशांत राही को भी उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। महाराष्ट्र की गढ़चिरौली अदालत ने यूएपीए के सेक्शन 13, 18, 20 और 39 के तहत प्रोफ़ेसर साईबाबा को दोषी पाया था।
पिछले साल सितंबर में सुरक्षित रखा था फैसला
न्यायमूर्ति विनय जी. जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मिकी एस.ए. मेनेजेस की खंडपीठ ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। बता दें, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद पिछले साल सितंबर में पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। प्रोफ़ेसर साईबाबा विकलांग हैं। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बिगड़ती सेहत के आधार पर उन्हें जुलाई 2015 में ज़मानत पर रिहा किया गया था। हालांकि हाई कोर्ट ने उनकी ज़मानत रद्द करते हुए उन्हें आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था। प्रोफ़ेसर साईबाबा बतौर सामाजिक कार्यकर्ता, रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम की एक संस्था से जुड़े हुए थे। वे 'रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट' के उपसचिव थे। 2014 में माओवादियों से संबंधों के लिए खुफिया एजेंसियों के निशाने पर थे।