नई दिल्ली। कोरोना महामारी ने आर्थिक स्थिति को कमजोर कर दिया है। देश की आर्थिक स्थिति को डांवाडोल कर दिया है। अब सरकार पर भी कोरोना से उपजे आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। लोकसभा में मंगलवार को संसद सदस्यों के वेतन भत्ते में 30 फीसदी की कटौती करने का निर्णय लिया गया।
संसद में मंगलवार को वेतन, भत्ता और पेंशन (संसोधन) विधेयक-2020 बिल को मंजूरी दे दी गई। इस विधेयक के तहत एक साल तक सांसदों के वेतन में 30 प्रतिशत की कटौती की जाएगी। हालांकि, सदन में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान तकरीबन सभी सांसदों ने वेतन में कटौती का समर्थन किया, लेकिन कई सदस्यों ने सांसद स्थानीय विकास निधि (एमपीलैड) में कटौती न करने की अपील की।
लोकसभा में मंगलवार को संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने इस विधेयक को चर्चा के लिए पेश किया। चर्चा के दौरान कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने सरकार से आग्रह किया कि (एमपीलैड) के फंड में कोई कटौती न की जाए। उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 से 2020 के बीच 2.69 लाख करोड़ रुपए का फंड रिलीज किया गया था, जिसमें से 2.52 लाख करोड़ रुपए खर्च हुआ था। इसका मतलब 93 प्रतिशत पैसा एमपीलैड से खर्च किया जाता है। कई संसद सदस्यों ने कहा कि केन्द्र सरकार चाहे तो उनका पूरा वेतन ले ले, लेकिन सांसद निधि पूरा मिलना चाहिए। सांसदों का कहना था कि सरकार हमारा पूरा वेतन ले ले, कोई भी सांसद इसका विरोध नहीं करेगा। लेकिन सांसद निधि पूरी मिलनी चाहिए, जिससे कि जनहित के लिए काम कर सकें।
उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी के कारण केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गत अप्रैल माह में प्रधानमंत्री समेत सभी केन्द्रीय मंत्रियों और सांसदों वेतन में 30 फीसदी की कटौती करने का फैसला लिया था। कोरोना संकट को देखते हुए यह कटौती एक साल तक रहेगी। इसके साथ ही, सांसदों को मिलने वाले सांसद निधि पर भी दो साल के लिए अस्थाई रोक लगाई गई है। इसके लिए 6 अप्रैल को एक अध्यादेश जारी किया गया था, जो सात अप्रैल को लागू हुआ था। इस अध्यादेश में कहा गया था कि कोरोना वायरस महामारी के कारण तुरंत राहत और सहायता की जरूरत है और इसलिए कुछ आपात कदम उठाए जा रहे हैं।