नई दिल्ली। महिलाओं को अबला यानी कमजोर कहा जाता है, लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार भारत में आत्महत्या करनेवालों में महिलाएं काफी पीछे हैं। सुसाइड करने वाले हर 100 लोगों में जहां 70.2 फीसदी पुरुष शामिल थे, तो वहीं केवल 29.8 फीसदी महिलाओं ने ही अपनी जीवन लीला समाप्त किया है। वर्ष 2018 के मुकाबले पिछले साल आत्महत्या के मामलों में 3.4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
1.39 लाख लोगों ने दी जाएं
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में हर दिन औसतन 381 लोगों ने आत्महत्या की है और इस तरह पूरे साल में कुल 1,39,123 लोगों ने खुद ही अपनी जान ले ली। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 के मुकाबले वर्ष 2019 में आत्महत्या के मामलों में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले साल जहां 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की, वहीं वर्ष 2018 में 1,34,516 और वर्ष 2017 में 1,29,887 लोगों ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली थी।
शहरों में अधिक मामले
सुसाइड की दर (1 लाख की जनसंख्या पर) में भी वर्ष 2018 की तुलना में इस साल 0.2 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। शहरों में सुसाइड की दर 13.9 फीसदी रही, यह पूरे देश में सुसाइड की दर 10.4 फीसदी से काफी ज्यादा है। 100 लोगों में 70.2 फीसदी पुरुष और 29.8 फीसदी महिलाएं।
पारिवारिक विवाद प्रमुख कारण
एनसीआरबी के डाटा के मुताबिक, फांसी से 53.6 फीसदी, जहर खाने से 25.8 फीसदी, डूबने से 5.2 फीसदी और आत्मदाह के जरिए 3.8 फीसदी लोगों ने सुसाइड किया। इनमें से 32.4 फीसदी मामलों के पीछे पारिवारिक विवाद कारण था, जबकि 5.5 फीसदी सुसाइड के पीछे शादी और 17.1 फीसदी सुसाइड के पीछे बीमारी को अहम वजह बताया गया। सुसाइड करने वाले हर 100 लोगों में 70.2 फीसदी पुरुष और 29.8 फीसदी महिलाएं शामिल थीं।
उत्तर प्रदेश में 3.9 फीसदी सुसाइड
डाटा में बताया गया कि इन 5 राज्यों में देश के कुल सुसाइड के 49.5% मामले रिकॉर्ड हुए। बाकी 50.5% मामले देश के बचे 24 राज्य और 7 केंद्रशासित राज्यों में सामने आए। जनसंख्या के आधार पर काफी बड़ा प्रदेश उत्तर प्रदेश में इस दौरान सिर्फ 3.9 फीसदी सुसाइड रिकॉर्ड किए गए। मास या फैमिली सुसाइड के सबसे ज्यादा मामले तमिलनाडु (16 फीसदी), आंध्र प्रदेश (14 फीसदी), केरल (11 फीसदी), पंजाब (9 फीसदी) और राजस्थान (7 फीसदी) में सामने आए।