सरकारी बैंकों में पूंजी डाले जाने के बारे में मांगी जानकारी
नई दिल्ली। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने वित्त मंत्रालय को पत्र लिखकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में बड़े स्तर पर पूंजी डालने के अभियान के संदर्भ में जारी प्रदर्शन ऑडिट को लेकर ब्योरा मांगा है। वर्ष 2016-17 के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में डाली गई पूंजी के बारे में प्रदर्शन ऑडिट की जांच कैग कर रहा है। वर्ष 2019 में एक लाख करोड़ रुपये जुटाने को लेकर भी संदेह जताया था। केंद्र ने वर्ष 2008-09 से 2016-17 के दौरान 1,18,724 करोड़ रुपये की पूंजी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में डाला है।
1.06 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डाली
बता दें कि भारत सरकार ने वर्ष 2017-18 में पीएसबी में कल 90,000 करोड़ रुपये की पूंजी डाली थी, जो अगले साल बढ़कर 1.06 लाख करोड़ रुपये हो गई। पिछले वित्त वर्ष में बांड के जरिये 70,000 करोड़ रुपये की पूंजी डाली गई। चालू वित्त वर्ष के लिए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 20,000 करोड़ रुपये की पूंजी डालने की योजना बनाई है।
सरकार ने बासेल तीन दिशानिर्देशों के अंतर्गत नियामकीय जरूरतों को पूरा करने के लिए वर्ष 2020 में 5,500 करोड़ रुपये पंजाब एंड सिंध बैंक में डाले थे। इसके अलावा, एसबीआई (भारतीय स्टैट बैंक) को अधिकतम 26,948 करोड़ रुपये की पूंजी मिली, जो डाली गयी कुल पूंजी का 22.7 प्रतिशत था। आईडीबीआई बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ इंडिया को भी कुल पूंजी में क्रमश: 8.77 प्रतिशत, 8.61 प्रतिशत, 7.88 प्रतिशत और 7.80 प्रतिशत पूंजी मिली।
किसी रिकॉर्ड में नहीं, जताया संदेह
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने वर्ष 2019 में एक लाख करोड़ रुपये जुटाने को लेकर भी संदेह जताया था। कैग ने कहा था,‘भारत सरकार का विभिन्न पीएसबी को पूंजी उपलब्ध कराये जाने को लेकर औचित्य किसी रिकॉर्ड में नहीं नजर आया। कुछ बैंक निर्धारित नियमों के तहत अतिरिक्त पूंजी पाने के लिए पात्र नहीं थे, लेकिन उन्हें राशि उपलब्ध करायी गई। एक बैंक को जरूरत से अधिक पूंजी दी गई। जबकि अन्य को पूंजी पर्याप्तता जरूरतों को पूरा करने के लिये जरूरी पूंजी प्राप्त नहीं हुई।’