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40 साल में 8 वित्त मंत्रियों ने खड़े किए हाथ, एक ने चुनाव लड़ा भी तो बुरी तरह हारे

-1980 के बाद से भारत में वित्त मंत्री नहीं लड़ते हैं लोकसभा का चुनाव, पीयुष गोयल पहली बार उतर रहे हैं मैदान में

डिजिटल न्यूज डेस्क, मुंबई। यह पहली बार नहीं है, जब किसी वित्त मंत्री ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। 1984 के बाद देश के 8 वित्त मंत्री चुनाव लड़ने से पीछे हट गए हैं। कोई भी नेता वित्त मंत्री रहते या तो लोकसभा का चुनाव नहीं लड़े या लड़े भी तो जीत नहीं पाए। एक वित्त मंत्री रहे नेता ने चुनाव लड़ा भी तो बुरी तरह हार गए।

पिछले दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा चुनाव लड़ने से यह कहकर इनकार कर दिया कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए ‘उस तरह का जरूरी फंड’ ही नहीं है। वर्ष 1980 तक वित्त मंत्री लोकसभा के चुनाव लड़ते भी थे और जीतते भी थे। लेकिन 1980 के बाद वित्त मंत्री के लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने या हारने का ट्रेंड ने जोर पकड़ लिया। इस फेहरिस्त में यशवंत सिन्हा से लेकर मनमोहन सिंह और पी. चिदंबरम से लेकर अरुण जेटली और सीतारमण जैसे नाम शामिल हैं।1980 के बाद जितने भी वित्त मंत्री बने, उनमें से अधिकांश पैराशूट राजनेता थे। वित्त मंत्री का पद उन्हें पार्टी के आंतरिक राजनीति या किसी अन्य कारणों से मिलता रहा है।

हाल ही में एक इंटरव्यू में वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि उन्हें पार्टी ने तमिलनाडु या आंध्र प्रदेश से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था, लेकिन काफी सोचने के बाद उन्होंने मना कर दिया। सीतारमण के मुताबिक, उनके पास न तो चुनाव लड़ने के लिए संसाधन है और न ही चुनाव जीतने की कला। उनका कहना है कि चुनाव लड़ने के लिए आपको कई समीकरण साधने पड़ते हैं. जैसे- जेंडर, जाति वगैरह-वगैरह…। यह सब मुझसे नहीं हो पाता, इसलिए मैंने इससे खुद को दूर कर लिया है।

वित्त मंत्रियों का चुनाव न लड़ने की कहानी

1952 में सी.डी. देशमुख को वित्त मंत्रालय की कमान सौंपी गई थी। हालांकि, 1957 के चुनाव से पहले ही उन्हें पद से हटा दिया गया। उनकी की जगह टी.टी. कृष्णमाचारी को वित्त मंत्रालय की कमान मिली। उनके बाद मोरारजी को वित्त मंत्रालय की कमान सौंपी गई।

इंदिरा सरकार में यशंवतराव चव्हाण और सी. सुब्रमण्यण जैसे दिग्गज नेता वित्त मंत्री थे। मोरारजी जब पीएम बने तो उन्होंने वित्त मंत्रालय की कमान हिरु भाई पटेल को सौंप दी। चौधरी चरण सिंह की सरकार में हेमवती नंदन बहुगुणा को वित्त मंत्री बनाया गया।

1984 में पहली बार चुनाव से दूर रहे थे 2 वित्त मंत्री

1980 में इंदिरा गांधी जब तीसरी बार प्रधानमंत्री बनीं, तो उन्होंने आर. वेंकेटरमण और प्रणब मुखर्जी को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी। प्रणब जब वित्त मंत्री बने, तब वे गुजरात से राज्यसभा के सांसद थे।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब 1984 में लोकसभा चुनाव हुए तो दोनों वित्त मंत्री चुनाव मैदान में नहीं उतरे। वेंकेटरमण देश के उपराष्ट्रपति बनने की वजह से चुनावी प्रक्रिया से दूर हो गए, जबकि मुखर्जी को राजीव गुट ने टिकट नहीं दिया।

जब वित्त मंत्री ने अपने बेटे को उतारा

राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री रहे शंकर राव चव्हाण भी 1989 में चुनाव लड़ने से पीछे हट गए थे। उन्होंने जब चुनाव नहीं लड़ने की बात कही, तो कांग्रेस ने उनके बेटे अशोक चव्हाण को नांदेड़ सीट से लोकसभा का प्रत्याशी बना दिया। अशोक चव्हाण जनता पार्टी के उम्मीदवार के. वेंकेटेश के हाथों 24 हजार वोटों से हार गए।

मनमोहन ने भी नहीं लड़ा चुनाव

1991 में कांग्रेस की जब सत्ता में वापसी हुई, तो पार्टी ने पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया। राव ने अपने कैबिनेट में मनमोहन सिंह को शामिल किया। तब तक वह किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। राज्यसभा के जरिए ही वह अपनी राजनीति करते थे।

1996, 2004 और 2009 में मनमोहन सिंह के चुनाव लड़ने की चर्चा भी हुई, लेकिन उन्होंने लोकसभा चुनाव से खुद को दूर ही रखा। 2004 में जब वह पहली बार प्रधानमंत्री बने, तब भी वे राज्यसभा के ही सदस्य थे।

 

वाजपेयी के एक मंत्री हारे, एक लड़े ही नहीं

1999-2004 तक अटल बिहारी कैबिनेट में 2 लोगों को वित्त मंत्री बनाया गया। शुरुआत के 3 साल जसवंत सिंह वित्त मंत्री के पद पर रहे। उनके बाद यह प्रभार यशवंत सिन्हा को सौंप दिया गया। 
2004 में अटल कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे जशवंत सिंह चुनाव नहीं लड़े, जबकि यशवंत सिन्हा हजारीबाग सीट से मैदान में उतरे। 
बीजेपी ने इस चुनाव में इंडिया शाइनिंग का नारा दिया था, लेकिन उसके वित्त मंत्री ही चुनाव हार गए। 2004 के चुनाव में सीपीआई के भानु प्रताप मेहता ने यशवंत सिन्हा को करीब 1 लाख वोटों से हराया। हालांकि, सिन्हा 2009 में इस सीट से वापसी करने में कामयाब रहे।

यूपीए के दूसरे कार्यकाल में 2 वित्त मंत्रियों ने नहीं लड़ा चुनाव

मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में 2 वित्त मंत्री बने, लेकिन दोनों ही चुनाव मैदान में नहीं उतरे। मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहले प्रणब मुखर्जी को वित्त मंत्री बनाया गया। 2012 में वे राष्ट्रपति बन गए। इसके बाद यह विभाग पी. चिदंबरम को दे दिया गया। 2014 में पी. चिदंबरम ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। हालांकि चिदंबरम तब शिवगंगा सीट से सांसद थे।

 

मोदी सरकार के वित्त मंत्री भी चुनाव लड़ने से पीछे हटे

2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी, तो राज्यसभा सांसद अरुण जेटली को वित्त मंत्री बनाया गया। पूरे 5 साल जेटली ही वित्त मंत्री रहे। इसके बाद जनवरी 2019 से फरवरी 2019 तक पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का जिम्मा मिला।

दिलचस्प बात है कि 2019 लोकसभा चुनाव में दोनों मंत्री चुनाव नहीं लड़े। 2019 लोकसभा चुनाव के बाद जेटली कैबिनेट में नहीं लिए गए, लेकिन पीयूष गोयल को जरूर मंत्री बनाया गया।

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्री बनाया गया। सीतारमण पूरे 5 साल तक वित्त मंत्री रही हैं। हालांकि, 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ने से उन्होंने भी इनकार कर दिया है, जबकि गोयल को मुंबई उत्तर से पहली बार चुनाव लड़ाया जा रहा है।

 

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