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‘हर लेवल पर बेईमानी’: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के जन्म प्रमाणपत्र सिस्टम पर कड़ी टिप्पणी

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✍🏻 डिजिटल न्यूज डेस्क, लखनऊ | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में जन्म प्रमाणपत्र जारी करने की व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब एक महिला याचिकाकर्ता के दस्तावेज़ों की जांच में उसके दो अलग-अलग जन्म प्रमाणपत्र सामने आए, जिनमें जन्मतिथि पूरी तरह अलग-अलग दर्ज थी। कोर्ट ने कहा कि यह स्थिति राज्य के सिस्टम में “हर लेवल पर मौजूद बेईमानी” की तस्वीर पेश करती है।

जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता की डिवीजन बेंच ने अपना गहरा असंतोष जताते हुए कहा कि राज्य में कोई भी व्यक्ति कहीं से भी अपनी मनचाही जन्मतिथि के साथ प्रमाणपत्र जारी करवा सकता है। अदालत के अनुसार, ऐसे डॉक्यूमेंट्स बेहद आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और कई मामलों में इन्हें क्रिमिनल केसों में भी मज़बूत प्राइमा फेसी सबूत की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।

मामला शिवंकी नाम की महिला की रिट पिटीशन की सुनवाई के दौरान सामने आया। UIDAI के डिप्टी डायरेक्टर द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ों में पाया गया कि एक जन्म प्रमाणपत्र मनौता पीएचसी से जारी हुआ था, जिसमें जन्मतिथि 10 दिसंबर 2007 दर्ज थी, जबकि दूसरा प्रमाणपत्र हर सिंहपुर ग्राम पंचायत से जारी हुआ, जिसमें जन्मतिथि 1 जनवरी 2005 लिखी गई थी।

इस चौंकाने वाली स्थिति पर हाईकोर्ट ने मेडिकल एवं हेल्थ डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को तलब कर यह स्पष्ट करने को कहा है कि ऐसा कैसे संभव हुआ और विभाग फर्जी प्रमाणपत्रों पर रोक लगाने के लिए क्या कदम उठा रहा है। अदालत ने विभाग से विस्तृत एफिडेविट मांगते हुए यह भी निर्देश दिया कि भविष्य में एक व्यक्ति को सिर्फ एक ही जन्म प्रमाणपत्र जारी हो, इसके लिए ठोस सिस्टम तैयार किया जाए। अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।


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