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अमृतकाल: भारत में बढ़ती असमानता ने तोड़ा ब्रिटिश राज का भी रिकॉर्ड: टॉप 1% के पास 40% संपत्ति, गडकरी ने जताई चिंता

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✍🏻 प्रहरी संवाददाता, नई दिल्ली। जब सरकार हर भाषण में “अमृतकाल” का सपना दिखा रही है, तब ज़मीनी आंकड़े एक कड़वी सच्चाई दिखा रहे हैं। भारत की आर्थिक असमानता अब ब्रिटिश राज को भी पीछे छोड़ चुकी है। आज 57.7% राष्ट्रीय आय पर टॉप 10% का कब्ज़ा है, जबकि देश का आम नागरिक सब्सिडी के कटौती नोटिस, बेरोज़गारी और महंगाई के बोझ तले दबा है। फिर भी सरकार ‘5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी’ के पोस्टर छपवाने में व्यस्त है।

भारत ने ब्रिटिश हुकूमत को भले ही 1947 में विदा कर दिया हो, लेकिन आर्थिक असमानता के मामले में देश के सत्ताधीश और मंत्रियो- कारपोरेट मालिकों के गठजोड़ ने अंग्रेजों के बनाए रिकॉर्ड को भी पछाड़ दिया है। वर्ल्ड इनइक्वलिटी डेटाबेस 2024 और वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि भारत की टॉप 1% आबादी के पास देश की 40.1% संपत्ति है, जबकि आधी आबादी को केवल 6.4% में गुज़ारा करना पड़ता है।

मुंबई के वित्तीय विश्लेषकों ने इन आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उनके अनुसार, भारत में आय और संपत्ति का वितरण अब औपनिवेशिक काल की तुलना में भी अधिक असमान हो चुका है। रिपोर्ट के अनुसार, देश की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी राष्ट्रीय आय का 57.7 प्रतिशत हिस्सा अर्जित करती है, जबकि आधी आबादी इस वितरण में लगभग नगण्य भागीदार है।

आर्थिक विशेषज्ञों ने वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब के कार्य-पत्र और इंडिया टुडे की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि आय और संपत्ति का यह अंतराल लगातार बढ़ता जा रहा है। उन्होंने इसे सामाजिक और नीतिगत ढांचे से जुड़ा हुआ बताया। उनके अनुसार, टैक्स नीति, श्रम कानून, कॉर्पोरेट समेकन, रियल एस्टेट व शेयर बाजार से आय, और राजनीतिक चंदों की व्यवस्था ये सभी इस असमानता को और गहरा कर रहे हैं।

इसी विषय पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी चिंता जताई है। उन्होंने नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि देश का धन कुछ अमीरों के हाथों में सिमट रहा है और गरीबों की संख्या में वृद्धि हो रही है। उन्होंने धन के विकेंद्रीकरण, कृषि और उद्योग क्षेत्र में निवेश, तथा बुनियादी ढांचे के न्यायसंगत विकास की आवश्यकता पर बल दिया।

गडकरी ने अपने संबोधन में कहा कि आर्थिक केंद्रीकरण लंबे समय तक टिकाऊ नहीं हो सकता और इससे सामाजिक असंतुलन पैदा होने की आशंका है। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों ने विकास के अवसरों को खोला था, जिनका लाभ अब सीमित वर्ग तक केंद्रित हो गया है।

 


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