पुणे की जमीन अधिग्रहण से जुड़ी है याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को दिया अल्टीमेटम
डिजिटल न्यूज डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को चेतावनी दी है। कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार दशकों से लंबित भूमि मुआवजे का शीघ्र निपटारा करे, वरना हम लाड़ली बहन योजना सहित फ्री बिजली समेत कई योजनाओं पर रोक लगा देंगे। अदालत ने करीब छह दशक पहले पुणे में भूमि अधिग्रहण का मुआवजा अब तक लंबित रखने पर महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई है।
जस्टिस भूषण एस. गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि आपके पास सरकारी खजाने से मुफ्त में पैसा बांटने के लिए हजारों करोड़ रुपये हैं, लेकिन आपके पास उस व्यक्ति को देने के लिए पैसा नहीं है, जिसकी जमीन को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना ही छीन लिया गया है।
भूमि अधिग्रहण मुआवजे पर महाराष्ट्र सरकार जब कोई संतोषजनक योजना लेकर कोर्ट में हाजिर नहीं हुई, तो नाराज सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को यह चेतावनी दी है। जस्टिस गवई ने सरकार से पूछा कि आपने 37 करोड़ रुपये के ऑफर के बाद अब तक सिर्फ 16 लाख रुपये ही क्यों अदा किए हैं?
राज्य सरकार के वकील ने हलफनामा पढ़ते हुए कोर्ट से कहा कि राज्य और वन विभाग, उनकी अर्जी पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर रहे हैं। इस पर कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि तो हम आदेश दे सकते हैं कि अधिग्रहित भूमि पर किया गया निर्माण अवैध है, लिहाजा उसे ढहा दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि 1961 में संविधान का अनुच्छेद 31-ए लागू था। अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी।
क्या है मामला
जंगल और भूमि संरक्षण मामलों की सुनवाई के दौरान कोर्ट में महाराष्ट्र के किसान की याचिका पर सुनवाई हो रही है। याचिकाकर्ता के पुरखों ने 1950 में 24 एकड़ जमीन खरीदी थी। सरकार ने 1963 में इसे अधिग्रहित कर लिया। बाद में मुआवजे को लेकर मुकदमेबाजी हुई। निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट से भी डिग्री हो गई औ्र 37 करोड़ रुपये मुआवजा तय हो गया। इसमें से 16 लाख रुपये का भुगतान ही किसान को किया गया। राज्य सरकार ने इस जमीन को रक्षा मंत्रालय को सौंप दिया। रक्षा मंत्रालय ने ये कहते हुए मुआवजा देने से इंकार कर दिया कि वो इस मामले में पक्षकार ही नहीं रहा है तो मुआवजा क्यों दे?