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रे धूर्तों ! भ्रूण का क्या कसूर है नालायकों….

भले ही हम 21 वीं सदी में शिक्षित समाज के साथ जीने का दावा करते हों, लेकिन आज भी हमारे सामने ऐसी तस्वीरें आती है, जो समाज के साथ मानवता को भी शर्मसार कर देती है। हम कहने को तो शिक्षित हैं, जागरूक हैं, लेकिन कृत्य जाहिलों वाला या फिर शातिर तबके का करते हैं। कुछ लोग अपनी हवश मिटाने के लिए हर सामाजिक बंधन व लोकलाज की मर्यादा लांघ जाते हैं। बहुत से लोग महिला अधिकारों और सबलीकरण की बातें करते हैं। लेकिन यही पढ़ा लिखा शातिर तबका अपनी हवश मिटाने के बाद जब गर्भ ठहर जाता है, तो भ्रूण को किसी कचरे के डिब्बे में फेंक आता है, या फिर धरती के दूसरे लालची भगवानों के गर्भपात सेंटर में जाकर भ्रूण को अवैध तरीके से नष्ट कर देता है। हर साल लाखों भ्रूणों की हत्या कर दी जाती है। गर्भपात कराने वाला तबका पढ़ा लिखा है, शिक्षित है, सामाजिक-आर्थिक रूप से सक्षम है। और हां, अपने अधिकारों के प्रति कथित रूप से सजग भी है…तो फिर उस भ्रूण का क्या कसूर है नालायकों….धूर्त इंसानों !

 

शातिर दलाल सर कार ! ड्रैकुला फिर जिंदा हो उठा…!

हवाबाज शातिर सरकार ने नोटबंदी की, मल्टी लेवल जीएसटी लागू किया। तब से देश की जीडीपी रसातल में जाने लगी। अब कोरोना और लॉकडाउन की दोहरी चुनौतियों के बीच सारे विरोध की अनदेखी करते हुए नया कृषि कानून बनाकर उसे जबरन लागू भी कर दिया। कोरोना के डर और बेरोजगारी की मार से सहमे देश के लोगों की बेबसी का फायदा उठाकर कॉर्पोरेट की चौकीदार सरकार अब इस कानून को किसानों पर लादना चाहती है। कोरोना के कारण लागू धारा 144 के बीच राजधानी पहुंचने की जिद किसानों ने ठान रखी है। सरकार कहती है कि खरीद-बिक्री की मौजूदा व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं होगा, लेकिन सरकार के माईबाप कॉर्पोरेट कंपनियों की खरीदारी से अपना धंधा कम रह जाने के डर से आढ़तियों ने तो अपने हाथ खींचने शुरू कर दिए हैं। निजाम निकाय चुनावों में मस्त है।

नीरो ड्रैकुला फिर जिंदा हो उठा…!


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