प्रहरी संवाददाता, मुंबई। भारत ने ब्रिटेन की कंपनी केयर्न एनर्जी पीएलसी को 1.2 अरब डॉलर लौटाने के अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती दी है। सरकार ने कहा है कि उसने ‘राष्ट्रीय कर विवाद’ में कभी अंतराष्ट्रीय मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया है। वित्त मंत्रालय ने रविवार को एक बयान में इस आशय की रिपोर्टों को भी खारिज किया है कंपनी की ओर से विदेशों में भारत की सरकारी सम्पत्ति कुर्क कराने की कार्रवाई की आशंका से सरकारी बैंकों को विदेशों में अपने विदेशी मुद्रा खातों से धन निकाल लेने को कहा गया है।
सरकार ने हालांकि तीन सदस्यीय मध्यस्थता अदालत में अपनी तरफ से न्यायधीश की नियुक्ति की और केर्यन से 10,247 करोड़ रुपये के पुराने टैक्स की वसूली के इस मामले में जारी प्रक्रिया में पूरी तरह भाग लिया। लेकिन मंत्रालय का कहना है कि न्यायाधिकरण ने एक राष्ट्रीय स्तर के कर विवाद मामले में निर्णय देकर अपने अधिकार क्षेत्र का अनुचित प्रयोग किया है। भारत गणराज्य इस तरह के मामलों में कभी भी मध्यस्थता की पेशकश अथवा उसपर सहमति नहीं जताता है।
सरकार ने केयर्न एनर्जी से कर की वसूली के लिए उसकी पूर्व में भारत स्थित इकाई के शेयरों को जब्त किया और फिर उन्हें बेच दिया। लाभांश को भी अपने कब्जे में ले लिया साथ ही कर रिफंड को भी रोक लिया। यह सब केयर्न से उसके द्वारा भारतीय इकाई में किए गए फेरबदल पर कमाए गए मुनाफे पर टैक्स वसूली के लिए किया गया। सरकार ने 2012 में इस संबंध में एक कानून संशोधन पारित कर पिछली तिथि से कर लगाने का अधिकार हासिल करने के बाद यह कदम उठाया। उधर, केयर्न ने भारत- ब्रिटेन द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत उपलब्ध प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए मामले को मध्यस्थता अदालत में ले गई। अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत में पिछले साल भारत सरकार को केयर्न के शेयरों और लाभांश के जरिए वसूले गए 1.2 अरब डॉलर की राशि लागत और ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया।