400 घंटे तक चला रेस्क्यू ऑपरेशन, 652 लोगों की टीम ने पाई सफलता
डिजिटल न्यूज डेस्क, उत्तरकाशी। उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को 400 घंटे के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद आखिरकार सुरक्षित बाहर निकालने में सफलता मिल ही गई। मजदूरों के रेस्क्यू में अलग-अलग टीमों के 652 लोग शामिल थे। जब चट्टानों को भेदने में मशीनें विफल हो गईं, तब मजदूरों के रेस्क्यू में सबसे अहम भूमिका रैट होल माइनर्स ने निभाई। उन्होंने जिंदगियां बचाने के लिए खुद कमान संभाली।
विशेषज्ञों की इस टीम ने 800 मिमी व्यास पाइप में घुसकर आखिरी के 10-12 मीटर की खुदाई की, जिसका नतीजा यह हुआ कि 2 किलोमीटर लंबी और करीब 50 फीट चौड़ी सुरंग में 17 दिनों से फंसे 41 मजदूर आखिरकार बाहर आ गए।
ये मजदूर 12 नवंबर को निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने के बाद फंस गए थे। इन्हें निकालने के लिए उसी दिन से ही कोशिशें शुरू हो गई थीं। इस ऑपरेशन में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ समेत देश-विदेश की कई एजेंसियां भी मदद के लिए पहुंचीं। रेस्क्यू के दौरान टीमों को कभी उम्मीद जगी, तो कभी निराशा भी देखने को मिली।
सुरंग से मजदूरों को निकालने के लिए कई तरह के प्लान बनाए गए, कुछ प्लान फेल भी हुए, लेकिन सभी एजेंसियां हॉरिजेंटल ड्रिलिंग में जुटी रहीं।
हॉरिजेंटल ड्रिलिंग करके करीब 60 मीटर मलबे को खोदकर 800 मिमी. व्यास का पाइप डाला गया। इसी पाइप से एनडीआरएफ की टीम मजदूरों के पास पहुंची और सभी मजदूरों को बाहर निकाला गया।
ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर बन रही यह सुरंग 4.5 किलोमीटर लंबी है। चारधाम ‘ऑल वेदर सड़क’ (हर मौसम में आवाजाही के लिए खुली रहने वाली सड़क) परियोजना का हिस्सा है।
रैट होल माइनर्स की बेबसी
रैट-होल माइनिंग अवैध है। रैट होल माइनर्स एक दूसरे की मदद से काम में निपुण होते हैं। निश्चित रूप से इसके लिए कोई मानक प्रक्रिया नहीं है बस जीवित बचे लोगों से ये लोग व्यावहारिक प्रशिक्षण लेते हैं। जो कुछ भी काम आए जाए, जो कुछ भी उन्हें खनिजों को चुपचाप निकालने में मदद करता है वह उनके संचालन का तरीका बन जाता है। विडंबना यह है कि ऐसी खनन गतिविधियों में लगे लोग मुश्किल से ही कोई पैसा कमाते हैं। खनन माफिया आम तौर पर इन रैट होल माइनर्स को नियुक्त करते हैं। गरीब श्रमिकों को दलालों और बड़े खनिज व्यापारी नियुक्त करता है।