✍🏻 डिजिटल न्यूज डेस्क, नई दिल्ली | देशभर की बार काउंसिलों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में भारी असमानता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम हस्तक्षेप किया है। अदालत ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए सभी राज्य बार काउंसिलों को नोटिस जारी किया है। याचिका में बार काउंसिलों में महिला वकीलों के लिए एक-तिहाई आरक्षण की मांग की गई है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में केवल 1 महिला न्यायाधीश हैं, जबकि देश के सभी हाई कोर्ट में लगभग 106 महिलाएं न्यायाधीश हैं, जो कुल लगभग 754 न्यायाधीशों का लगभग 14 % हिस्सा बनती हैं।
यह याचिका अधिवक्ता शैला चौधरी द्वारा दायर की गई है, जिसे अधिवक्ता एम.डी. अनस चौधरी और आलिया ज़ैद ने तैयार किया तथा अधिवक्ता-ऑन-रिकॉर्ड अंसर अहमद चौधरी के माध्यम से दाखिल किया गया। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जॉयमल्या बागची की पीठ ने की।
अदालत ने नोटिस को एक सप्ताह के भीतर प्रत्युत्तर देने योग्य (रिटर्नेबल) बनाते हुए कहा कि भले ही कुछ राज्यों में नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी हो, लेकिन महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु अदालत नामांकन फिर से खोलने का निर्देश दे सकती है।
पीठ के समक्ष अधिवक्ता डॉ. चारू माथुर ने याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी कि शीर्ष अदालत “तीन दिन” के लिए भी नामांकन विंडो दोबारा खोलने का आदेश दे सकती है ताकि महिलाओं को प्रतिनिधित्व का अवसर मिल सके।
याचिका में भारतीय विधि पेशे में महिलाओं की ऐतिहासिक यात्रा का उल्लेख किया गया है कॉर्नेलिया सोराबजी (1892) और रेजिना गुहा (1916) जैसी अग्रदूतों से लेकर 1923 के लीगल प्रैक्टिशनर्स (विमेन) एक्ट तक, जिसने पहली बार महिलाओं को वकालत का अधिकार दिया था।
याचिका में कहा गया है कि आज भी देश की 441 सदस्यीय राज्य बार काउंसिलों में केवल 9 महिलाएं ही निर्वाचित हैं, जो संवैधानिक समानता (अनुच्छेद 14, 15, 16, 21) के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जैसे संसद और विधानसभा में 106वें संविधान संशोधन के तहत महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण लागू हुआ है, वैसे ही एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत बार काउंसिलों में भी समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
